जयपुर :सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह से चंद कदमों की दूरी पर अंदरकोट में एक मस्जिद स्थित है, जिसे अढ़ाई दिन का झोपड़ा कहा जाता है. अपनी खूबसूरती के कारण ये इमारत दुनियाभर में प्रसिद्ध है. अजमेर आने वाले पर्यटक इस इमारत को जरूर देखते हैं.
असल में यह झोपड़ा नहीं, बल्कि एक मस्जिद है जो सैकड़ों साल पुरानी है. यह भारत की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है. अजमेर का सबसे पुराना स्मारक भी है. आखिर इस मस्जिद का नाम अढ़ाई दिन का झोपड़ा क्यों रखा गया इसके पीछे भी एक इतिहास है. जो करीब 800 साल पुराना है.
1192 ईस्वी में हुआ था अढ़ाई दिन के झोपड़े का निर्माण
इस मस्जिद को 1192 ईस्वी में अफगानी आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी के आदेश पर उसके सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था. अढ़ाई दिन का झोपड़े के मुख्य द्वार के बाई ओर संगमरमर का एक शिलालेख है.
इस शिलालेख पर संस्कृत में उस महाविद्यालय का जिक्र है, जिसे चौहानवंश के शासक बीसलदेव ने बनवाया था. सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह पर काफी तादाद में जायरीन जियारत करने के लिए पहुंचते हैं. ये जायरीन अढ़ाई दिन के झोपड़े को देखना नहीं भूलते.