नई दिल्ली: नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया का मानना है कि श्रीलंका की आर्थिक स्थिति की तुलना भारत से करना ‘बेवकूफी’ है. हालांकि इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हम इस द्वीपीय देश के मौजूदा संकट से सबक सीख सकते हैं. पनगढ़िया ने न्यूज ऐजेंसी के साथ बातचीत में कहा कि 1991 के भुगतान संतुलन के संकट के बाद देश की सरकारों ने वृहद अर्थव्यवस्था का प्रबंधन ‘संकुचित’ तरीके से किया है.
उन्होंने कहा कि जहां तक भारत की बात है, राजकोषीय घाटे को से बाहर नहीं जाने दिया गया है. चालू खाते के घाटे को नीचे रखने के लिए विनिमय दरों को नीचे आने दिया गया है. मुद्रास्फीति पर अंकुश के लिए मौद्रिक नीति में कदम उठाए गए हैं. वित्तीय पूंजी प्रवाह को सोच-समझ कर खोला गया है. पनगढ़िया ने कहा कि भारत और श्रीलंका की तुलना करने पर ‘हंसी’ आती है. भारत ने अपने राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए विदेश से कर्ज नहीं लिया है.
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने हाल में नरेंद्र मोदी सरकार पर महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर हमला बोलते हुए कहा था कि भारत में ‘बहुत कुछ श्रीलंका’ जैसा दिख रहा है, सरकार को लोगों का ध्यान नहीं बांटना चाहिए. पनगढ़िया से इसी बारे में सवाल किया गया था. श्रीलंका गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। वहीं भारत बढ-चढ़कर अपने पड़ोसी देश की मदद कर रहा है.
पनगढ़िया ने कहा, ‘हमें निश्चित रूप से भविष्य के वृहद आर्थिक प्रबंधन के लिए श्रीलंका के अनुभव से सबक सीखना चाहिए.' बेरोजगारी के मुद्दे पर पनगढ़िया ने कहा कि भारत की समस्या बेरोजगारी न होकर कम रोजगार या कम उत्पादकता वाले रोजगार की समस्या है. कोलंबिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर पनगढ़िया ने कहा, ‘‘हमें ऐसा रोजगार पैदा करने पर ध्यान देना चाहिए जिनमें लोगों को अच्छी आय हो सके. कोविड-19 महामारी के साल यानी 2020-21 में भी भारत में बेरोजगारी दर 4.2 प्रतिशत ही थी, जो 2017-18 के 6.1 प्रतिशत से कम है.