रांची:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हर गतिविधि सुर्खियां बटोरती है. 2014 में पहली बार गैर आदिवासी मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद पीएम ने कई बार झारखंड का दौरा किया. दुनिया के सबसे बड़े हेल्थ स्कीम यानी आयुष्मान भारत योजना तक की लांचिंग रांची से की. अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर भी रांची आए. 2014 से 2019 तक झारखंड को केंद्र का लांचिंग पैड तक कहा जाने लगा था. लेकिन 2019 में सत्ता गंवाते ही पीएम के दौरे पर जैसे विराम लग गया. लेकिन 2024 के चुनावी वर्ष से ठीक पहले उनके भगवान बिरसा की जन्मस्थली पर आने के कार्यक्रम ने चर्चा के बाजार को गर्म कर दिया है. वह देश के पहले प्रधानमंत्री होंगे जो भगवान बिरसा की जन्मस्थली पर जाएंगे.
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झारखंड के स्थापना दिवस के दिन उनके उलिहातू आगमन की क्या वजह हो सकती है. क्योंकि केंद्र सरकार बार-बार इस बात पर फोकस करती है कि आदिवासियों के लिए जो काम किए जा रहे हैं, वो आजतक किसी ने नहीं किया. यहां तक कि पीएम की पहल पर ही आदिवासी समाज की द्रौपदी मुर्मू देश की राष्ट्रपति बनीं. पीएम के 15 नवंबर को प्रस्तावित दौरे को इस मायने में भी खास माना जा रहा है क्योंकि पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ की 70 विधानसभा सीटों पर दूसरे चरण का मतदान 17 नवंबर को होना है.
लोगों के बीच अपनी बात पहुंचाने की कोशिश:वरिष्ठ पत्रकार शंभु नाथ चौधरी के मुताबिक, चुनाव के वक्त पीएम मोदी वोटरों तक अपनी बात पहुंचाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं. जब भी किसी राज्य में चुनाव होता है तो वे पड़ोस के दूसरे राज्य को चुनते हैं और वहां से मैसेज देते हैं. उनके उलिहातू आगमन को भी इसी रूप में देखा जा रहा है.
छत्तीसगढ़ में 7 नवंबर को 20 सीट और 17 नवंबर को 70 सीटों पर चुनाव होना है. ऐसे में भगवान बिरसा की जन्मस्थली से पीएम मोदी आदिवासियों के लिए भावनात्मक संदेश देने की कोशिश करेंगे. वह बताएंगे कि आदिवासियों के हित को लेकर भाजपा कितनी संवेदनशील है. वह याद दिलाएंगे कि अंग्रेजों से लड़कर भगवान का दर्जा पाने वाले बिरसा मुंडा की जयंती को आज तक वो सम्मान नहीं मिला, जिसे उनकी सरकार ने साल 2021 में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में घोषित कर नवाजा था.
पीएम के दौरे का छत्तीसगढ़ पर क्या पड़ेगा असर:वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्र की राय कुछ और है. उनका कहना है कि जहां तक पीएम के उलिहातू आने की बात है तो इसका छत्तीसगढ़ पर कोई असर पड़ेगा, ऐसा नहीं लगता. क्योंकि पीएम की नजर लोकसभा चुनाव पर है. उन्होंने आदिवासी को राष्ट्रपति बनाया है. आदिवासियों की रोज बात कर रहे हैं. पीएम मोदी अबतक दो बार खूंटी आ चुके हैं. वैसे वह बगल की सीट पर रैली कर प्रभाव जरूर डालते हैं. लेकिन मुझे नहीं लगता कि उनके उलिहातू आगमन का छत्तीसगढ़ चुनाव पर प्रभाव पड़ेगा. अगर वह सिमडेगा या गुमला में ऐसा कुछ कार्यक्रम करते तो कुछ मायने निकाले जा सकते थे.
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पूरे देश के आदिवासियों को मैसेज देने की कोशिश:वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्र के मुताबिक उलिहातू आकर पीएम मोदी पूरे देश के आदिवासियों को मैसेज देना चाहते हैं. वह बताना चाहते हैं कि केंद्र की सरकार आदिवासियों के हित को लेकर कितनी गंभीर है. दरअसल, केंद्र में जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा कभी झारखंड के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. लेकिन पिछले चुनाव में खूंटी से लोकसभा सीट जीतने पर पीएम मोदी ने उन्हें कैबिनेट में बड़ी जगह दी. इसलिए पीएम चाहते हैं कि पिछले लोकसभा चुनाव की तरह ही आदिवासी वोटर उनके साथ भावनात्मक रूप से जुड़े रहें.
मौके को लुभाने की कोशिश में झारखंड के भाजपा नेता: पीएम मोदी के झारखंड दौरे और भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू जाने को लेकर झारखंड के बीजेपी नेता भी खासे उत्साहित हैं. वे इस मौके को आदिवासी वोट बैंक को अपनी ओर करने में तब्दील करना चाहते हैं. झारखंड के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के ट्वीट से तो ऐसा ही लग रहा है. बाबूलाल मरांडी ने पीएम मोदी को आदिवासी हितैषी बताया है और कहा कि पीएम मोदी ने 8 आदिवासी समाज के सांसदों को मंत्रिमंडल में जगह दी है. ऐसे में समझा जा सकता है कि पीएम मोदी के दौरे को भाजपा नेता पूरी तरह लुभाना चाहते हैं.
लोकसभा सीटों पर भाजपा की स्थिति:खास बात है कि झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से 11 सीटें भाजपा और एक सीट सहयोगी आजसू के पास है. शेष दो सीटों में एक सीट पर झामुमो और एक सीट पर कांग्रेस है. भाजपा शेष दो सीटों को भी कंवर्ट करने की तैयारी कर रही है. दरअसल, 2014 के विधानसभा चुनाव में 28 में से 11 एसटी सीटे जीतने वाली भाजपा 2019 के चुनाव में दो एसटी सीटों पर सिमट गई थी. इसका असर लोकसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है.
हालांकि, लोकसभा की 14 सीटों में पांच सीटें एसटी और एक एससी के लिए रिजर्व है. वर्तमान में राजमहल और सिंहभूम को छोड़कर सभी शेष तीन एसटी सीटें भाजपा के पास हैं. साथ ही एक मात्र एससी सीट भी भाजपा के पास है. लेकिन इंडिया गठबंधन की वजह से उपजे हालात को देखते हुए भाजपा कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती. इसलिए पीएम मोदी खुद हर सीट को कैल्कुलेट कर राज्य स्तर पर बिखरे वोट बैंक को साधने में जुटे हैं. लिहाजा, पहली बार बतौर प्रधानमंत्री भगवान बिरसा की जन्मस्थली पर आकर पीएम मोदी एक बड़ा मैसेज देना चाह रहे हैं.