हरिद्वार: आज चैत्र नवरात्रि 2022 का पांचवां दिन है. नवरात्रि के पांचवें दिन मां के पंचम स्वरूप माता स्कंदमाता की पूजा अर्चना की जाती है. इस मौके पर ईटीवी भारत, आपको मां चंडी देवी मंदिर में माता के उग्र व शांत रूप के दर्शन रूप में कराने जा रहा है. चंडी देवी मंदिर यह मंदिर हरिद्वार में स्थित है. कहा जाता हैं कि यह इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां मां चंडी खंभ(स्तंभ) के रूप में स्वयं प्रकट हुई थी. यह मां का रूद्र रूप है. जबकि, इसके बगल में ही मां का शांत स्वरूप मूर्ति के रूप में स्थापित है.
हरिद्वार में स्थित चंडी देवी का यह प्राचीन मंदिर हिंदुओं की आस्था का एक प्रमुख स्थल है. यह मंदिर हिमालय की सबसे दक्षिणी पर्वत श्रृंखला शिवालिक पहाड़ियों के पूर्वी शिखर में नील पर्वत के ऊपर स्थित है. हरिद्वार के पंच तीर्थ में से यह भी एक तीर्थ स्थल है. यह मंदिर पूरी दुनिया में एक सिद्ध पीठ के रूप में पूजनीय है. माना जाता है कि यहां भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है. इसलिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु अपनी मन्नत लेकर देवी के दरबार में अपनी हाजिरी लगाते हैं. मां चंडी देवी मंदिर, हरिद्वार में स्थित तीन पीठों में से एक है. वहीं अन्य दो पीठ मनसा देवीमंदिर और माया देवी मंदिर हैं.
चंडी देवी मंदिर का इतिहास कई सौ साल पुराना बताया जाता है. मंदिर में मौजूद मूर्ति, 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित की गई थी. शंकराचार्य हिंदू धर्म के सबसे महान पुजारियों में से एक थे. मंदिर को नील पर्वत के तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है, जो हरिद्वार के पांच तीर्थों में से एक है.
यह है पौराणिक कथा: देवी चंडी को चंडिका के रूप में भी जाना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीनकाल में शुंभ और निशुंभ नामक राक्षसों ने स्वर्ग के देवता इंद्र के राज्य पर कब्जा कर लिया था और देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया था. इसके बाद देवताओं की प्रार्थना के बाद माता पार्वती ने राक्षसों के संहार के लिए चंडी रूप धारण किया. इसपर शुंभ ने उनसे विवाह करने की इच्छा जताई जिससे इनकार किए जाने पर शुंभ ने अपने राक्षस प्रमुख चंड और मुंड को उनको मारने के लिए भेजा, लेकिन वे देवी चामुंडा के हाथों मारे गए. फिर शुंभ और निशुंभ ने मिलकर देवी चंडिका को मारने की आए, लेकिन देवी ने दोनों राक्षस का संहार कर दिया.
मां त्रिशूल के रूप में हैं विराजमान: इसके बाद माता चंडिका ने नील पर्वत के ऊपर थोड़ी देर आराम किया था और इसके बाद से मां शांत रूप में यहीं विराजमान हो गईं. ऐसा माना जाता है कि बाद में इसी स्थान पर एक मंदिर बनाया गया. इसके अलावा पर्वत श्रृंखला में स्थित दो चोटियों को शुंभ और निशुंभ कहा जाता है. हरिद्वार में माता मनसा देवी, माता माया देवी और त्रिशूल के रूप में मां चंडी देवी, हरिद्वार की रक्षा करती आ रही हैं. दरअसल, त्रिशूल की मान्यता ये है कि तीनों देवियां पर्वत पर विराजमान हैं.
चंडी चौदस का है विशेष महत्व:वैसे तो मां चंडी के दरबार में सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि से लेकर चंडी चौदस तक यहां पर विशेष पूजा का आयोजन होता है. माना जाता है कि नवरात्रि में जहां मां के तमाम स्वरूप मंदिर में विराजमान रहते हैं. वहीं यह भी मान्यता है कि, चंडी चौदस के दिन पृथ्वी पर मौजूद तमाम देवी देवता अपनी बहन चंडी से मिलने यहां पधारते हैं.