रांची :इतिहास में देश की आजादी के लिए पहली क्रांति का जिक्र 1857 में मिलता है. लेकिन, इससे करीब दो साल पहले ही संथालियों ने अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था. संथालियों को एकजुट कर बिगुल फूंकने वाले थे दो भाई सिदो और कान्हो. इसमें छोटे भाई चांद-भैरव और बहन फूलो-झानो ने पूरा साथ दिया. संघर्ष लंबा चला और आखिरकार अंग्रेजों ने सिदो-कान्हो को पकड़ लिया. बरगद के पेड़ पर दोनों भाइयों को फांसी दे दी गई. सिदो-कान्हो की याद में हर साल 30 जून को हूल दिवस मनाया जाता है.
अत्याचार से तंग आकर छेड़ी थी जंग
इतिहासकार बताते हैं कि उस वक्त महाजनों का दबदबा था. महाजन अंग्रेजों के काफी करीबी थी. संथालों की लड़ाई महाजनों के खिलाफ थी लेकिन अंग्रेजों के साथ मिले होने के चलते संथालों का संघर्ष दोनों के साथ था. अत्याचार से तंग आकर संथालों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग छेड़ी थी. 1855 में साहिबगंज के भोगनाडीह में अंग्रेजों के खिलाफ जंग को लेकर एक बैठक बुलाई गई. इस बैठक में हजारों संथाली शामिल हुए. अंग्रेजों को इस बात की जानकारी मिली की बड़ी संख्या में संथाली बैठक कर रहे हैं. अंग्रेज इस बात से वाकिफ थे कि तोप और बंदूक होने के बावजूद संथालियों के आगे टिकना मुमकिन नहीं है. अंग्रेजों को तीर का निशाना समझ नहीं आता था.
रातों रात हुआ मार्टिलो टावर का निर्माण
1856 में तत्कालीन अनुमंडल पदाधिकारी सर मॉर्टिन ने रातों रात मार्टिलो टावर का निर्माण कराया और उसमें छोटे-छोटे छेद बनाए गए ताकि छिपकर संथालियों को बंदूक से निशाना बनाया जा सके, लेकिन आदिवासियों के पराक्रम को यह टावर नहीं दबा पाया. संथालियों ने अदम्य साहस की बदौलत अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए और उन्हें उल्टे पांव भागना पड़ा.