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हूल क्रांति: संथाल विद्रोह को नहीं दबा सकी थी अंग्रेजी हुकूमत

देश की आजादी के लिए 1857 में हुई पहली क्रांति से करीब दो साल पहले ही संथालों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग छेड़ दी थी. संथालों ने तीर कमान के दम पर ही अग्रेजों को पानी पिला दिया था. हर साल 30 जून को हूल दिवस के रूप में मनाया जाता है और इसके नायक सिदो-कान्हो को लोग याद करते हैं.

हूल क्रांति
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Published : Jun 30, 2021, 12:17 PM IST

रांची :इतिहास में देश की आजादी के लिए पहली क्रांति का जिक्र 1857 में मिलता है. लेकिन, इससे करीब दो साल पहले ही संथालियों ने अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था. संथालियों को एकजुट कर बिगुल फूंकने वाले थे दो भाई सिदो और कान्हो. इसमें छोटे भाई चांद-भैरव और बहन फूलो-झानो ने पूरा साथ दिया. संघर्ष लंबा चला और आखिरकार अंग्रेजों ने सिदो-कान्हो को पकड़ लिया. बरगद के पेड़ पर दोनों भाइयों को फांसी दे दी गई. सिदो-कान्हो की याद में हर साल 30 जून को हूल दिवस मनाया जाता है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

अत्याचार से तंग आकर छेड़ी थी जंग

इतिहासकार बताते हैं कि उस वक्त महाजनों का दबदबा था. महाजन अंग्रेजों के काफी करीबी थी. संथालों की लड़ाई महाजनों के खिलाफ थी लेकिन अंग्रेजों के साथ मिले होने के चलते संथालों का संघर्ष दोनों के साथ था. अत्याचार से तंग आकर संथालों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग छेड़ी थी. 1855 में साहिबगंज के भोगनाडीह में अंग्रेजों के खिलाफ जंग को लेकर एक बैठक बुलाई गई. इस बैठक में हजारों संथाली शामिल हुए. अंग्रेजों को इस बात की जानकारी मिली की बड़ी संख्या में संथाली बैठक कर रहे हैं. अंग्रेज इस बात से वाकिफ थे कि तोप और बंदूक होने के बावजूद संथालियों के आगे टिकना मुमकिन नहीं है. अंग्रेजों को तीर का निशाना समझ नहीं आता था.

अंग्रेजों ने रातों रात मॉर्टिलो टावर का निर्माण कराया था.

रातों रात हुआ मार्टिलो टावर का निर्माण

1856 में तत्कालीन अनुमंडल पदाधिकारी सर मॉर्टिन ने रातों रात मार्टिलो टावर का निर्माण कराया और उसमें छोटे-छोटे छेद बनाए गए ताकि छिपकर संथालियों को बंदूक से निशाना बनाया जा सके, लेकिन आदिवासियों के पराक्रम को यह टावर नहीं दबा पाया. संथालियों ने अदम्य साहस की बदौलत अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए और उन्हें उल्टे पांव भागना पड़ा.

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हंसते-हंसते सिदो-कान्हो ने दे दी कुर्बानी

उस संघर्ष में तो संथाली अंग्रेजों पर भारी पड़ गए थे लेकिन ये संघर्ष लंबा चला. सिदो-कान्हो ने आखिरी दम तक अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ा. आखिरकार अंग्रेजों ने दोनों भाइयों को पकड़ लिया और बरगद के पेड़ पर दोनों को फांसी दे दी. दोनों भाइयों ने इस मुल्क को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए खुद को हंसते-हंसते कुर्बान कर दिया. अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में हजारों संथालियों ने भी कुर्बानी दी थी. हर साल 30 जून को हूल दिवस के मौके पर लोग सिदो-कान्हो की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हैं और संथालियों के संघर्ष को याद करते हैं.

पाकुड़ में शहीद सिदो-कान्हो के नाम पर पार्क भी है.

हूल आंदोलन की याद दिलाता है मार्टिलो टावर

जिला मुख्यालय में अनुमंडल कार्यालय के पास बनाए गए मार्टिलो टावर की पहचान को स्थापित रखने के लिए तत्कालीन उपायुक्त केके खंडेलवाल ने सिदो-कान्हो पार्क का निर्माण कराया था. वर्षों पूर्व बनाए गए मार्टिलो टावर संथाल विद्रोह की याद में आज भी खड़ा है. तत्कालीन उपायुक्त डॉ सुनील कुमार सिंह के कार्यकाल में मार्टिलो टावर का जीर्णोद्धार कराया गया. जीर्णोद्धार के वक्त इस टावर के ऐतिहासिक पहलूओ का पूरा ध्यान रखा गया. आज भी 27 फीट ऊंची और 17 फीट चौड़ी मार्टिलो टावर को देखने के लिए दूरदराज से लोग पहुंचते हैं.

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