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कोरोना बना काल: दिन-रात कफन तैयार करने में जुटे मजदूर - कोरोना महामारी

कोरोना महामारी ने पूरे विश्व में कोहराम मचा रखा है. एक तरफ संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ रही है, वहीं दूसरी तरफ इससे कई लोग मौत के गाल में समा जा रहे हैं. कोरोना से मरने वाले लोगों की संख्या में लगातार वृद्धि के कारण कफन की मांग भी बढ़ती जा रही है. देखिए ये रिपोर्ट.

कोरोना बना काल
कोरोना बना काल

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Published : May 20, 2021, 1:19 PM IST

गया :देशभर में कोरोना का कहर जारी है. हर दिन कोरोना लोगों की जान लील रहा है, ऐसे में गया जिले के मानपुर प्रखंड के पटवाटोली में बड़े पैमाने पर कफन और पितांबरी का निर्माण किया जा रहा है. लगभग 15 से 20 परिवार दिन-रात कफन निर्माण में लगे हुए हैं. उनके द्वारा बनाए गए कफन बिहार राज्य के विभिन्न जिलों के अलावा उत्तर प्रदेश, झारखंड, उड़ीसा और बंगाल में बड़े पैमाने पर भेजे जा रहे हैं.

देखिए रिपोर्ट

बड़े पैमाने पर कफन का निर्माण
मानपुर का पटवाटोली कभी बिहार का मैनचेस्टर उद्योग के रूप में जाना जाता था. यहां के बने सूती, गमछा और चादर दूर-दूर तक निर्यात किए जाते थे, लेकिन कोरोना महामारी के कारण अब गमछा, चादर का निर्माण बंद हो गया है और कफन का निर्माण बड़े पैमाने पर जारी है.

चादर और गमछा की मांग बंद

चादर और गमछा की मांग बंद
मानपुर पटवाटोली के रहने वाले नोख प्रसाद बताते हैं कि इन दिनों चादर और गमछा की मांग बंद हो गई है. ऐसे में हमारा काम भी बंद हो गया था. लेकिन, पिछले दो महीने से व्यापारियों के द्वारा लगातार कफन की मांग की जा रही है. ऐसे में हमारा पूरा परिवार 15 घंटे कार्य कर कफन निर्माण कर रहा है. कफन से मिलने वाले पैसे से हमारी जीविका चल रही है.

कफन की मांग पर वृद्धि

''पहले 15 से 20 हजार पीस कफन बनाते थे, लेकिन अब अप्रैल और मई माह में 40 से 50 हजार पीस कफन बना रहे हैं. छोटे व्यवसायी अपने हाथों से तो बड़े व्यवसायी पावर लूम से कफन का निर्माण कर रहे हैं''- नोख प्रसाद, स्थानीय निवासी

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''फरवरी और मार्च माह में कफन की मांग काफी कम थी, लेकिन कोरोना के कारण हो रही मौतों की वजह से अब विगत दो महीने से कफन की मांग दोगुनी हो गई है. पूरे पटवाटोली मोहल्ले में 15 से 20 परिवार दिनरात कफन बनाने का कार्य कर रहे हैं. -विजय प्रसाद पटवा, स्थानीय निवासी

दूसरे राज्यों में कफन का निर्यात

दूसरे राज्यों में कफन का निर्यात
स्थानीय निवासी राम प्रकाश पटवा बताते हैं कि बांग्लादेश में जाने वाले कफन पर बंगाली भाषा में हरे राम-हरे कृष्ण लिखा होता है, जबकि उड़ीसा जाने वाले कफन पर जय श्री राम लिखा रहता है. इसके अलावा झारखंड और यूपी के लिए भी बड़े पैमाने पर कफन का निर्यात किया जा रहा है.

कफन का निर्माण

''पटवाटोली कभी बिहार का मैनचेस्टर उद्योग के लिये जाना जाता था. यहां बड़े पैमाने पर सूती के चादर और गमछे का निर्माण होता था, लेकिन अब कोरोना के कारण उक्त सारे काम बंद है. सिर्फ कफन का ही निर्माण हो रहा है.''-रामप्रकाश पटवा, स्थानीय निवासी

दिन-रात हो रहा कफन का निर्माण

स्थानीय निवासी रामप्रकाश पटवाने कहा कि पटवाटोली को आईआईटियन का गांव भी कहा जाता था. प्रतिवर्ष यहां 30 से 40 छात्र आईआईटी में सफल होते थे, लेकिन कोरोना के कारण परीक्षाएं बंद है. अब कफन निर्माण ही एकमात्र यहां के लोगों का सहारा बन गया.

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दिन रात हो रहा कफन का निर्माण
बिहार के गया जिले के पटवाटोली में दिन-रात कफन बनाने का कार्य जारी है. कोरोना से लगातार हो रही मौतों के कारण कफन की मांग बढ़ गई है. पटवाटोली के बने कफन बिहार राज्य के विभिन्न जिलों के अलावा उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में भी बड़े पैमाने पर निर्यात किए जा रहे हैं.

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