कुल्लू: 1 जुलाई से अमरनाथ यात्रा शुरू हो चुकी है. माना जाता है कि भोलेनाथ के दर्शन करने से बड़ी से बड़ी बाधा दूर हो जाती है. इसीलिए हर साल भारी संख्या में श्रद्धालु बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए अमरनाथ जाते हैं. अमरनाथ यात्रा को कठिन धार्मिक यात्राओं में से एक माना जाता है लेकिन अमरनाथ यात्रा से भी कठिन हिमाचल में श्रीखंड महादेव की यात्रा होती है. वजह है यहां की चढ़ाई, एक तरफ जहां अमरनाथ की चढ़ाई करीब 13 हजार फीट है वहीं श्रीखंड महादेव की यात्रा के लिए 18 हजार फीट से भी अधिक की ऊंचाई पर जाना पड़ता है. यहां अमरनाथ यात्रा की तरह घोड़े, खच्चर या पालकी की सुविधा नहीं मिलती है, श्रद्धालुओं को करीब 35 किलोमीटर की चढ़ाई पैदल ही करनी पड़ती है. जिसके बाद एक ऊंची शिला के रूप में श्रीखंड महादेव के दर्शन होते हैं.
कहां स्थित है श्रीखंड महादेव और कब से होगी यात्रा शुरू-श्रीखंड महादेव की यात्रा हिमाचल प्रदेश में होती है, जो कुल्लू जिले के निरमंड में है. ये स्थान भी देवों के देव महादेव से जुड़ा है और सावन के महीने में ये विशेष यात्रा होती है. इस बार ये धार्मिक यात्रा 7 जुलाई से 20 जुलाई के बीच होगी. श्रीखंड महादेव पहुंचना का रास्ता बेहद दुर्गम क्षेत्रों से होकर गुजरता है, जोखिम भरे इस सफर में श्रद्धालु करीब 35 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ते हैं. जिसके कारण इसे सबसे मुश्किल धार्मिक यात्राओं में शुमार किया जाता है. इस दौरान ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी का सामना करना पड़ सकता है. कहा जाता है कि अमरनाथ यात्रा से ज्यादा कठिन यह यात्रा है. कई श्रद्धालुओं की यहां चढ़ाई चढ़ते हुए जान भी चली जाती है. हालांकि इस कठिन चढ़ाई के दौरान कुदरत की खूबसूरती हर पल आपके चारों ओर होगी, सफर के दौरान श्रद्धालुओं को सिंहगाड़, थाचडू, नयन सरोवर, भीमडवारी और पार्वती बाग जैसे सुंदर स्थानों का दर्शन करने का अवसर भी मिलेगा. जाओ गांव से शुरू होने वाला सफर सिंहगाड़, थाचडू, कालीटॉप, भीम डवारी और पार्वती बाग से होता हुआ श्रीखंड महादेव तक पहुंचता है.
श्रीखंड महादेव से जुड़ी पौराणिक कथा-ये यात्रा भगवान शिव को समर्पित है, 18 हजार से भी अधिक ऊंचाई पर एक बहुत ऊंची शिला है. जिसके दर्शन के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु इस यात्रा को करते हैं. कुल्लू के रहने वाले पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि ये यात्रा कई सालों से चली आ रही है. मान्यता है कि भगवान शिव से वरदान प्राप्त करने के बाद भस्मासुर महादेव को भी भस्म करना चाहता था. तब भगवान शिव यहीं पर आकर छिपे थे, जिसके बाद भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार ने भस्मासुर को उसके हाथों ही भस्म करवा दिया. भस्मासुर के अंत के बाद भगवान शिव गुफा से निकले, मान्यता है कि महादेव यहां एक शिला रूप में मौजूद है. कहते हैं भस्मासुर का का आतंक देख मां पार्वती की आंखों में आंसू आ गए थे, जिससे एक सरोवर बन गया. जिसे आज पार्वती बाग के नाम से जाना जाता है. इस सरोवर की एक धार यहां से 25 किलोमीटर दूर निरमंड के देव ढांक तक गिरती है.
श्रीखंड महादेव की एक कहानी महाभारत काल से भी जुड़ती है. कुल्लू के पंडित हरिकृष्ण बताते हैं कि पांडव अपने 12 वर्ष के वनवास के दौरान यहां पहुंचे थे. उन्होंने अपना कुछ वक्त यहां बिताया था. यहां आज बड़ी बड़ी शिलाओं को काटकर रखा गया है और कुछ गुफाएं भी मौजूद हैं. कहते हैं कि ये पांडु पुत्र भीम का कारनामा था. जिसके निशान आज भी यहां मिलते हैं. यही वजह है कि यहां एक स्थान भीमडवार कहलाता है. मान्यता है कि यहां एक राक्षस रहता था जो यहां आने वाले भक्तों को मार देता था. भीम ने ही उस राक्षस का वध किया था और उसी राक्षस के खून के कारण यहां की जमीन लाल हो गई है.
पंजीकरण जरूरी, 18 से 60 साल के लोग ही कर सकते हैं यात्रा-कुल्लू जिले के निरमंड विकासखंड के तहत आने वाले श्रीखंड महादेव की ऊंचाई 18570 फीट है. इस यात्रा के लिए बकायदा रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है. 7 जुलाई से शुरू होने वाली यात्रा के लिए अब तक 4 हजार लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवाया है. कुल्लू प्रशासन के निर्देशों के मुताबिक यात्रा में 18 से 60 साल तक की उम्र के लोग ही हिस्सा ले सकते हैं. ऑफलाइन के साथ-साथ shrikhandyatra.hp.gov.in पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन भी करवाया जा सकता है. रजिस्ट्रेशन फीस 250 रुपये रखी गई है. प्रशासन की ओर से बेस कैंप और मेडिकल कैंप भी बना दिए गए हैं. इस यात्रा में किसी भी तरह की नशीली चीजों को ले जाने की अनुमति नहीं होगी. श्रद्धालुओं को अपना मेडिकल सर्टिफिकेट भी लाना होगा, ऑनलाइन आवेदन के वक्त भी इसे जमा कर सकते हैं जिससे मेडिकल कैंप में उनका वक्त बर्बाद नहीं होगा. ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन आने वाले श्रद्धालुओं के लिए पंजीकरण और मेडिकल चेकअप की सुविधा भी होगी.