मुंबई :हरियाणा में किसानों पर पुलिस के लाठीचार्ज (Lathi Charge on Farmers) को लेकर शिवसेना ने केंद्र और हरियाणा सरकार पर निशाना साधा है. अपने मुखपत्र 'सामना' में लाटीचार्ज की तुलना ‘जलियांवाला बाग’ और तालिबान शासन से की है.
सामना ने लिखा कि अफगानिस्तान में तालिबानी जिस तरह से हिंसात्मक घटनाओं को अंजाम देकर इंसानों को मार रहे हैं, उसी तालिबानी तरीके से हरियाणा में भाजपा सरकार ने सैकड़ों किसानों के सिर फोड़कर भारत माता की भूमि को खून से भिगो दिया है. स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाए जाने के बीच ये खून-खराबा हुआ. सामना में उपजिलाधिकारी आयुष सिन्हा के कथित वीडियो का भी जिक्र किया जिसमें ‘किसानों के सिर फूटने तक मारो, आंदोलन के लिए उतरे किसानों के सिर पर निशाना साधकर लाठी-डंडे मारो, सिर फूटना ही चाहिए' जैसे आदेश देते हुए वह नजर आए. शिवसेना ने तंज किया कि ‘किसानों के सिर फोड़नेवाली हरियाणा सरकार बर्खास्त करके वहां राष्ट्रपति शासन लगाओ’, ऐसी मांग अब कोई करनेवाला है क्या?
सामना ने लिखा कि मोदी सरकार का एक केंद्रीय मंत्री महाराष्ट्र में आकर मुख्यमंत्री को मारने की धमकी देता है. इसके संबंध में उस पर सूक्ष्म कानूनी कार्रवाई होते ही ‘महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाओऽऽऽ’ ऐसा शोरगुल मचानेवाले यही लोग हरियाणा के खून से लथपथ किसानों की तस्वीरें देखकर चुप हैं. कौन हैं ये उपजिलाधिकारी आयुष सिन्हा? किसानों का सिर फोड़ो ऐसा बेतुका आदेश देता है. ये अधिकारी पल भर भी नागरी सेवा में नहीं रहना चाहिए. उसकी बर्खास्तगी का काम तो सरकार कर सकती है कि नहीं? सरकार को जन आशीर्वाद चाहिए. वो किसानों के सिर फोड़कर मिलेगा क्या?
'किसानों के साथ हो रहा अमानवीय व्यवहार'
सामना ने लिखा कि पिछले वर्ष भर से पंजाब-हरियाणा के किसान दिल्ली की सीमा पर अपनी मांगों को लेकर ताल ठोंककर बैठे हुए हैं. धूप, हवा, बरसात, तूफान की परवाह किए बगैर वे वहां दृढ़तापूर्वक खड़े हैं. इस आंदोलन में अभी तक दो सौ के करीब किसान शहीद हुए हैं. किसान एक ही जगह डटे रहे, फिर भी सरकार का मन नहीं पसीजा. हजारों किसान संसद अधिवेशन के दौरान दिल्ली में आकर जंतर-मंतर रोड पर आंदोलन कर रहे थे लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के कदम वहां मुड़े नहीं. किसानों के ‘मन की बात’ क्या है? उनके बाल-बच्चों का भविष्य सुरक्षित रहे इसके लिए तीन काले कृषि कानून को रद्द करो, यही उनकी मांग है. खेती का निजीकरण रोको और कृषि उत्पन्न बाजार समितियों को कॉर्पोरेट वालों के हाथों में जाने न दें, समर्थन मूल्यों का कानून बनाओ इसके अलावा बड़ी मांग क्या है? लेकिन इस मांग के लिए हजारों किसान गाजीपुर की सीमा पर वर्ष भर से बैठे हैं और सरकार उनके साथ अमानवीय व्यवहार कर रही है. इतना ही नहीं, शनिवार को आंदोलनकारी किसानों पर शैतानी हमला भी हुआ.