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शिवसेना का असदुद्दीन ओवैसी पर वार, सामना संपादकीय में बताया भाजपा का सूत्रधार

शिवसेना ने सामना संपादकीय में ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पर निशाना साधा है. साथ ही इसके लिए का सूत्रधार भाजपा को बताया है.

शिवसेना ने सामना संपादकीय
शिवसेना ने सामना संपादकीय

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Published : Sep 27, 2021, 8:37 AM IST

मुंबई:उत्तर प्रदेश के होने वाले विधानसभा चुनाव मेंऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पूरे जोर शोर से उतरे हैं, लेकिन चुनाव में उन्हें उतारने के पीछे के लिए भाजपा सूत्रधार है. इसी विषय पर शिवसेना ने आज अपने मुखपत्र सामना में संपादकीय में लिखा है.

संपादकीय में लिखा है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव होने तक क्या-क्या देखना पड़ेगा, कराया जाएगा, ये कहा नहीं जा सकता. साथ ही संपादकीय में यह भी लिखा है भारतीय जनता पार्टी की सफल यात्रा के परदे के पीछे के सूत्रधार ओवैसी और उनकी पार्टी बेहतरीन ढंग से काम में जुटी नजर आ रही है. उत्तर प्रदेश चुनाव के मौके पर जातीय, धार्मिक विद्वेष निर्माण की पूरी तैयारी एआईएमआईएम ने कर ली है, ऐसा नजर आ रहा है. दो दिन पहले ओवैसी के प्रयागराज से लखनऊ जाने के दौरान रास्ते में उनके समर्थक जुट गए और उन्होंने ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाए.

इससे पहले तक इस तरह की नारेबाजी नहीं होती है लेकिन विधानसभा चुनाव के समीप आते ही ओवैसी के द्वारा भड़काऊ भाषण देने के बाद पाकिस्तान जिंदाबाद की नारेबाजी योजनाबद्ध ढंग से लिखी गई पटकथा की तरह है. संपादकीय में लिखा है कि ओवैसी पश्चिम बंगाल में भी इसी तरह की राजनीति कर रहे थे जिससे ममता बनर्जी की पराजय हो. लेकिन पश्चिम बंगाल में हिंदू व मुसलमान सभी ने ममता बनर्जी के पक्ष में खुलकर मतदान किया तथा ओवैसी की राजनीति को नकार दिया. वहीं बिहार में ओवैसी की वजह से तेजस्वी यादव मामूली अंतर से हार गए. अन्यथा बिहार में तेजस्वी यादव के हाथ में सत्ता की कमान गई होती.

संपादकीय में यह लिखा है कि धर्मांधता का सहारा लेकर मत विभाजन कराना और जीत खरीदना यह व्यापारी नीति एक बार तय हो गई तो दूसरा क्या हो सकता था! प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका में जाकर धर्मांधता, आतंकवाद, अलगाववाद आदि पर जोरदार भाषण दिया और इसके लिए उनकी जितनी सराहना की जाए, उतनी कम ही है. परंतु उसी दौरान हमारे ही देश में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाए जाते हैं, इसे क्या कहा जाए? मोदी, योगी जैसे प्रखर राष्ट्रभक्त हिंदूवादी नेता राज्य व देश की सत्ता में हैं, इसे ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ वाले भूल गए हैं.

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सामना में लिखा है कि चुनावी दौर में ऐसी साजिश हमेशा रची जाती है. इससे एक बार फिर कुछ लोगों के सिर फूटेंगे, रक्त बहाए जाएंगे. चुनाव में इस तरह का लोकतांत्रिक खेल चलता ही रहेगा. रायबरेली में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाने मतलब राष्ट्रभक्तों की छाती पर किया गया वार है. संपादकीय में लिखा है कि ओवैसी और उनकी एमआईएम पार्टी की नीति निश्चित तौर पर क्या है? ये महाशय देशभर में मुसलमानों पर अन्याय का डंका पीटते हुए घूमते हैं. लेकिन देश का मुसलमान समझदार हो गया है. उसे अपना हित किसमें है, यह समझ आने लगा है. पत्र ने लिखा है कि ‘ओवैसी’ जैसे को यहां के मुसलमान नेता मानने को तैयार नहीं हैं. ओवैसी अथवा उनके जैसे नेता अब तक कई बार तैयार हुए और समय के साथ नष्ट हो गए. देश की राजनीति में मुस्लिम समाज को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

संपादकीय में लिखा है कि तीन तलाक जैसे संवेदनशील मुद्दे पर मानवता विरोधी भूमिका वैसे अपनाई जा सकती है? तीन तलाक पर कानूनी बंदी लगाकर सरकार ने अच्छा काम किया और लाखों मुसलमान महिलाओं को गुलामी के बोझ से आजाद कराया. परंतु जिन धर्मांध नेताओं, मुल्ला-मौलवियों ने इस कानून का विरोध किया, उनके पीछे ओवैसी खड़े रहे. इसलिए मुसलमानों के किस अधिकार और न्याय की बात ओवैसी कर रहे हैं? मुसलमानों की राजनीति यह कोई राष्ट्रवाद हो ही नहीं सकती.

पत्र ने लिखा है कि राम मंदिर से वंदे मातरम् तक सिर्फ विरोध ही कोई मुस्लिम समाज को दिशा देने की नीति नहीं हो सकती है. मुसलमान इस देश के नागरिक हैं और उन्हें देश के संविधान का पालन करते हुए ही अपना मार्ग बनाना चाहिए. ऐसा कहने की हिम्मत जिस दिन ओवैसी में आएगी, उस दिन ओवैसी को राष्ट्र नेता के रूप में प्रतिष्ठा मिलेगी.ओवैसी भी जिन्ना की तरह उच्च शिक्षित, कानून पंडित हैं, परंतु उसी जिन्ना ने राष्ट्रभक्ति का बुर्खा ओढ़कर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का नारा दिया था. देश के विभाजन की यह साजिश थी और उसके पीछे ब्रिटिशों की तोड़ो-फोड़ो और राज करो, यही नीति थी. आज ओवैसी की सभा में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लग रहे हैं. इसके पीछे भी राजनीतिक सूत्र फोड़ो-तोड़ो और जीत हासिल करो है.

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