MP Shankaracharya Statue: ओंकारेश्वर में शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा का हुआ अनावरण, चाइना में तैयार हुए थे 290 पैनल - स्टेच्यू के मूर्तिकार 1 महीने चाइना में रुके
मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में मांधाता पर्वत पर आदि गुरु शंकराचार्य की बाल स्वरूप 108 फीट ऊंची प्रतिमा का सीएम शिवराज ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ अनावरण किया है. ईटीवी भारत से भीम सिंह मीणा की इस रिपोर्ट में जानिए कैसे तैयार हुई आदिगुरु शंकराचार्य की यह प्रतिमा.
भोपाल।आदिगुरु शंकराचार्य को समर्पित मध्यप्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट एकात्म धाम ने अपना मूर्तरूप लेना शुरू कर दिया है. गुरुवार को ओंकारेश्वर के मांधाता पर्वत के ऊपर आचार्य शंकराचार्य की 108 फीट बहुधातु से बनी प्रतिमा का अनावरण सीएम शिवराज सिंह चौहान और अनेको धर्मगुरुओं की गरिमामयी उपस्थिति में हुआ. बाल स्वरूप में आकर ले चुकी 108 फीट ऊंची तीन धातुओं से बनी 100 टन वजनी प्रतिमा को नर्मदा के किनारे मान्धाता पर्वत पर लगभग 11.5 हैक्टेयर भूमि पर स्थापति किया गया है.
प्रसिद्ध मूर्तिकार भगवान रामपुरे ने की ईटीवी भारत से बात:12 साल के शंकराचार्य की यह मूर्ति पत्थर निर्मित 16 फीट के कमल पर स्थापित की गई है और यह प्रतिमा विख्यात चित्रकार वासुदेव कामत के द्वारा बनाये गये चित्र के आधार पर बनाई गयी है. जिसे प्रसिद्ध मूर्तिकार भगवान रामपुरे ने मूर्तरूप दिया है. ईटीवी भारत ने भगवान रामपूरे से मूर्ति निर्माण को लेकर खास बातचीत की.
ऐसे कार्यों में साधना बहुत जरुरी:एक कलाकार के लिए बहुत मुश्किल होता नहीं है, लेकिन यह मामला कुछ अलग था. हमें साधना में जाना होता था. आर्टिस्ट की एकाग्रता अच्छी हो तो भाव ऊपर आ जाते हैं. हमने प्रार्थना की और हर रोज करीब 3 या 4 बजे उठते थे. पहला काम होता है, मॉडल में भाव लाना और वह साधना से ही हो सकता था. मैं तो कहुंगा कि उन्होंने करवा लिया है. हम तो निमित्त मात्र हैं." यह कहना है ओंकारेश्वर में आदि गुरू शंकराचार्य की मूर्ति को मूर्त रूप देने वाले मूर्तिकार भगवान रामपुरे का. महाराष्ट्र के शोलापुर के रहने वाले आर्टिस्ट रामपुर बात करते हुए भावुक हो गए.
देश से 15 आर्टिस्टों का हुआ चयन: जब उनसे पूछा कि आपकी यात्रा कैसी रही और क्या चुनौतियां थी तो "वह बोले कि इस मूर्ति के मॉडल को तैयार करने के लिए भारत वर्ष के करीब 15 आर्टिस्ट का चयन किया गया था. वे सभी अच्छे ख्यात आर्टिस्ट हैं. जिन वासुदेव कामत के चित्र के आधार पर इस मॉडल को तैयार करना था, वे हमारे मित्र हैं. उनके चित्र के आधार पर पहले 5 फीट का मॉडल बनाकर दिया. उसमें से तीन लोगों का चयन हुआ. जो पहला पांच फीट का मॉडल था, वो मेरे बड़े लड़के सागर रामपुरे ने बनाया था. उसका चयन हाे गया. जो तीन लोग थे, उनको सूचना थी कि उनको बाल स्वरूप चाहिए. उन्होंने अपनी भावनाएं बताई. फिर हमने दोबारा पांच फीट का मॉडल बना दिया. उसके बाद मेरा चयन हो गया. बड़ी विनम्रता से कहता हूं कि आदि शंकराचार्य की कृपा से ही मेरा चयन उनकी मूर्ति बनाने के लिए हुआ है."
आदिगुरु शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा
तकनीक ने बहुत मदद की, चाइना में मैटल कन्वर्ट किया:जब उनसे पूछा कि मॉडल के बाद इसे 108 फीट बनाने तक का सफर कैसाा था. तो उन्होंने कहा हम निमित्त रहे. उन्होंने बताया कि हमारे स्केल मॉडल में ही सभी भाव आ गए थे, लेकिन असली मदद टेक्नोलॉजी से मिली. टेक्नोलॉजी इतनी फॉरवर्ड हो गई है कि अब किसी तस्वीर को या मॉडल को इनलॉर्ज करना बहुत आसान बात हो गया है. मेरे शोलापुर में मैटल कन्वर्ट करेन की कोई सुविधा नहीं है. इसलिए न्यास ने तय किया कि चाइना में मैटल कन्वर्ट करवाया जाए. ठीक वैसे ही जैसे वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति का किया किया था. मैंने एक महीने तक वहीं रुककर काम किया है. जब पैनल बनने लगे और ओंकारेश्वर में पहली बार चेहरा खुला तो आनंद की ऐसी भावना थी कि इसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता हूं, आंखों में आंसू आ गए."
पहनावे और आध्यामित्का का रखना था ध्यान: इस पूरे काम में मूर्ति के पहनावे और आध्यात्मिकता का ध्यान रखना था. हमारे साथ इतने बड़े विद्वान थे. वासुदेव कामत हैं. भट्टी साहब, मनीष, कौशल, हैदराबाद से प्रसाद भी आएं हैं. सभी लोगों के विचार लिए गए. मेरा छोटा लड़का इस काम में एक साल से लगा हुआ है. कपड़े की एक एक सिलवट पर काम किया गया. ऐसा बनाया कि कपड़ा भी कॉटन का लगे. जब मांधाता पहाड़ पर हवा चलेगी तो सिलवट ऐसी लगेगी, मानो हवा से उड़ रही है. मैं बड़ी विनम्रता से कहना चाहता हूं कि भले ही मेरा नाम एक आर्टिस्ट के तौर पर साामने आ रहा है, लेकिन इसे बनाने के लिए कई आर्टिस्ट थे, जिन्होंने बनाने के लिए काम करते रहे. मेरे ड्राइवर की भी मदद मिली. मूर्ति के एक्सप्रेसशन और स्माइल के लिए कई रिफ्रेंस लिए गए. यह एक नार्मल बच्चा नहीं है. उनकी आंखें ऐसी लगनी चाहिए कि वह एक तपस्वी हैं. आंखों में ध्यान में विरक्ति उसमें दिखाई देगी.