मुंबई : शिवसेना ने अपने संपादकीय 'सामना' के जरिये पीएम मोदी पर निशाना साधा है. सामना में शिवसेना ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी अचानक दिल्ली के रकीबगंज स्थित गुरुद्वारे में पहुंचे. उन्होंने गुरु तेग बहादुर की समाधि के समक्ष मत्था टेका. इसमें बेचैन होने जैसी क्या बात है? मोदी कुछ भी करें तो वो नाटक या ढोंग है, ऐसा मानते हुए विरोधी टीका-टिप्पणी करते हैं. ये ठीक नहीं है. इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री थीं वे कई बार मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों में गई थीं.
ईद का शीर कुरमा और बिरयानी भी खाई है. लेकिन मोदी के संदर्भ में विरोधी कुछ अलग भूमिका अपनाते हैं, इसका आश्चर्य होता है. देश का माहौल फिलहाल उतना ठीक नहीं है. कोरोना का संकट है. बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था का संकट बढ़ गया है. गत एक महीने से पंजाब के किसान दिल्ली की सीमा पर आंदोलन कर रहे हैं.
ये किसान ‘सिख’ अर्थात लड़ाका समाज के हैं. देश की रक्षा में सिखों का महत्वपूर्ण योगदान है. ऐसे सिखों का आंदोलन दिल्ली में शुरू है, इसी दौरान प्रधानमंत्री रकीबगंज गुरुद्वारे में बड़ी सादगी से पहुंचे. पुलिस सुरक्षा का तामझाम दूर रखकर वे गुरुद्वारे में गए और गुरु तेग बहादुर की समाधि के समक्ष दंडवत प्रणाम किया. इसके बाद हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं, ‘मैं ऐतिहासिक गुरुद्वारा रकीबगंज साहिब के दर्शनार्थ गया. वहां गुरु तेग बहादुर के पवित्र पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया था.
दुनिया के करोड़ों लोगों की तरह मैं भी गुरु तेग बहादुर की दयालुता से प्रेरित हुआ हूं.’ प्रधानमंत्री मोदी ने केसरी पगड़ी पहनकर आम नागरिकों की तरह दर्शन किया. ऐसा कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री गुरुद्वारे में आ रहे हैं, इसकी कोई भी पूर्व सूचना गुरुद्वारा प्रबंधकों को नहीं थी इसलिए मोदी को देखते ही लोगों को आश्चर्य हुआ. मोदी के आगमन से अन्य श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो, इसका ध्यान रखा गया. मोदी ने पूरी भक्ति-भावना से गुरु का दर्शन किया. प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुद्वारा जाकर सिखों के मन को जीतने का प्रयोग किया. किसान आंदोलन के कारण पंजाब का सिख समुदाय नाराज है. वे मोदी विरोधी नारे लगा रहे हैं. पंजाब के इन किसानों को आतंकवादी और खालिस्तानी आदि साबित करके बदनाम करने का प्रयास किया गया इसलिए भड़के हुए सिखों की भावनाओं को शांत करने का प्रयास किया गया है, ऐसा कहा जा रहा है.
गुरुद्वारे के पीछे की राजनीति
मोदी गुरुद्वारे में गए इसके पीछे राजनीति है. सिखों से इतना ही प्रेम था, तो पंजाब के किसानों को एक महीने से कड़ाके की ठंड में सड़क पर क्यों खड़ा किया हुआ है? सिखों के अन्न और पेट पालने के मुद्दे सुलझाने नहीं है और सिखों के गुरु के समक्ष नतमस्तक होना है, ये नाटक है. ऐसा विरोधी कहते होंगे लेकिन मोदी की श्रद्धा पर कोई सवाल न खड़ा करे.