नई दिल्ली : शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने शनिवार को एक प्रस्ताव पारित कर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे को 'पार्टी से विश्वासघात करने वालों' के खिलाफ कार्रवाई के लिए अधिकृत किया है. शिवसेना बागियों पर कड़ा रुख अख्तियार कर रही है. इस मुद्दे पर शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी (Shiv Sena MP Priyanka Chaturvedi) ने जानिए क्या कहा.
सवाल-चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखने के फैसले के बाद धड़ाधड़ बैठकें क्या साबित कर रही हैं. क्या अब कोशिश ये हो रही है कि पार्टी ही बच जाए ?
जवाब-देखिए, हम बहुत निश्चिंत हैं कि हम सरकार भी बचाएंगे और पार्टी भी. हमारी पार्टी में ये चौथी बगावत है और हम इससे भी उबर जाएंगे. जो भी प्रूव करना है, सरकार जाएगी या रहेगी, वो तो फ्लोर ऑफ द हाउस में होना है. वो कोई पांच सितारा गुवाहाटी के होटल से तो होगा नहीं. हम पूरी असेंबली उनके लिए तो शिफ्ट करेंगे नहीं वहां. महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई है, आप मुंबई आइए और जो शक्ति प्रदर्शन करना है, मुंबई मे करिए.
उनका दो तिहाई का दावा तो सिर्फ असेंबली में है, उस बहुमत का भी इस्तेमाल वो नहीं कर पाएंगे. क्योंकि सारे विधायकों को या तो बीजेपी में विलय करना पड़ेगा या फिर डिसक्वालिफाई किए जाने के बाद एक नए दल के रूप में इनको जीत कर आना पड़ेगा. दसवीं अनुसूची के तहत अगर इनके पास दो-तिहाई बहुमत विधान सभा में है भी, उनको वोटिंग का अधिकार तो तभी होगा, जब वो विधानसभा की बैठक में शामिल होते हैं. लेकिन अगर वो शामिल नहीं होते हैं और नए दल की बात करते हैं, तो वे सब डिसक्वालिफाई होंगे और उसी दल के चुनाव चिह्न पर उन्हें लड़ाई लड़नी पड़ेगी. लेकिन मैं ये विश्वास दिला दूं कि जब ये डिसक्वालिफाई किए जाएंगे, इनका नाम भी जनता याद नहीं रखेगी.
सवाल- तो क्या अब पार्टी और इसके सिंबल का मसला चुनाव आयोग चला जाएगा ?
जवाब- कोई ज़रूरत नहीं है चुनाव आयोग जाने की. बहुत स्पष्ट है कि दो तिहाई लोग, संसद से लेकर जिला परिषद तक अगर उनके पास हैं, तो चुनाव चिह्न की बात आएगी. दो तिहाई संगठन की बात होनी है, सिर्फ विधानसभा में सीटों की नहीं. कांग्रेस में जब टूट हुई थी, तो पूरे संगठन मे टूट हुई थी. ये वो मामला नहीं है.
सवाल- क्या शिवसेना में किसी तरह का आत्मचिंतन करने की भी बात हो रही है, कि आखिर कमी कहां रह गई ?
जवाब-बागी गुट ने ऐसा काम किस वजह से किया, क्यों किया या कौन सा ऐसा दबाव था उनके ऊपर या फिर उनकी अपनी महत्वाकांक्षाओं की वजह से ऐसा हुआ, उन सब बातों पर हम फैसला करेंगे. लेकिन यहां तो ये लोग इस हद तक गिर गए हैं कि ये बाला साहब ठाकरे जी तक का नाम अपने दल के साथ जोड़ रहे हैं. यानी ये भी स्पष्ट हो गया है कि आप लोग अपने बलबूते नहीं जीत पाओगे. आपको उसके लिए भी बाला साहेब के नाम की ज़रूरत है. ढाई साल बाद हिंदुत्व की बात कर रहे हैं. कौन सा हिंदुत्व सिखाता है कि पीठ में खंजर भोंक कर आगे बढ़ा जाता है. बाला साहेब तो जो कहते थे वो करते थे. आप लोग तो वो दगाबाज़ हैं कि जो बोला उसके खिलाफ चले गए.
सवाल-पार्टी में क्या इस बात पर भी चर्चा हो रही है कि एनसीपी और कांग्रेस के साथ शिवसेना का गठबंधन अप्राकृतिक था ?
जवाब-जब ये गठबंधन हुआ था, एकनाथ शिंदे जी हों या गुलाब राव पाटिल जी, या दादा जी भूसे हों जो वहां अभी बैठे हैं. इन सबसे राय-मशविरा करके इस गठबंधन का निर्णय लिया गया था. ये ताना जी सावंत जो अभी वहां पर बैठे हैं, उनको बहुत कष्ट था कि हम बीजेपी के साथ अलायंस में बैठे हैं और उनकी मांग उस अलायंस (बीजेपी के साथ) को तोड़ने की थी. एकनाथ शिंदे का 2015 का आप वो भाषण सुन लें जिसमें उन्होंने कहा था कि मैं इस्तीफा देने को तैयार हूं, इनके (बीजेपी के) साथ काम करने को तैयार नहीं हूं. आज जो महाविकास अघाड़ी बना, आप को सारी ज़िम्मेदारियां दीं, आप किस कारण से भाग कर गए, वो आपको महाराष्ट्र की जनता को समझाना पड़ेगा.
सवाल-अब तो कहा जा रहा है कि शिवसेना का हिंदुत्व बालासाहेब वाला नहीं रहा.
जवाब-मीडिया का ये एजेंडा ही रहा है कि हमारा हिंदुत्व डाइल्यूट हो. राम मंदिर का जब अदालत से फैसला आया, तो उद्धव जी बाला साहेब ठाकरे ही वो पहले राजनेता थे जो रामलला के दर्शन करने अयोध्या पहुंचे. रामलला के मंदिर को डोनेशन देने वाला पहला राजनैतिक दल शिवसेना ही थी. शिवसेना ही वो पहली पार्टी है जो हिंदुत्व गवर्नेंस और वसुधैव कुटुम्बकम की बात करती है. इसी वसुधैव कुटुम्बकम के चलते उन्होंने कोविड अच्छे से संभाला, बगैर कसी भेदभाव के और बगैर किसी मंशा के कि कौन हमारे पक्ष में है और कौन हमारे खिलाफ है. एकमत से उद्धव जी ठाकरे सबसे पापुलर चीफ मिनिस्टर माने जाते हैं. ये सब उन्होंने हिंदुत्व धर्म का पालन करते हुए किया है. ये बीजेपी का एजेंडा है कि हम हिंदुत्व से दूर हो गए.