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सामना में शिवसेना का तंज- चुनाव आयोग की झोलबाजी!

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Published : Apr 5, 2021, 10:53 AM IST

सामना में शिवसेना ने चुनाव आयोग को आड़े हाथ लिया. संपादकीय में छपे लेख में शिवसेना ने तमाम मुद्दों को उठाया.

Shiv Sena criticizes Election Commission's role in Assam
सामना में शिवसेना ने चुनाव आयोग पर साधा निशाना

मुंबई:महाराष्ट्र की शिवसेना सरकार ने विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव आयोग पर हमला बोला है. शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में इस पर लेख लिखा है. संपादकीय में चुनाव आयोग को आड़े हाथ लेते हुए शिवसेना ने लिखा कि अत्यंत व्यथित मन से कहना चाहता हूं कि हमारे देश का चुनाव आयोग मृत हो चुका है अथवा सत्ताधारी पार्टी के हुक्म का लाचार तावेदार बन गया है.

शिवसेना ने आगे लिखा कि चुनाव आयोग के नियम वाली पुस्तक के निष्पक्षतावाले पन्ने मोदी सरकार ने फाड़कर फेंक दिए हों, ऐसी अवस्था निर्माण हो गई है. ऐसी चिंता प्रियंका गांधी ने व्यक्त की है. शिवसेना ने लिखा कि चार राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. पश्चिम बंगाल व असम में क्या हो रहा है, इस पर सभी का ही ध्यान केंद्रित है. चुनाव आयोग को चुनाव के दौरान सत्ताधारी पार्टी के पदाधिकारियों जैसी भूमिका नहीं निभानी चाहिए. यह उम्मीद भी यहां टूट गई. असम की ताजी घटना झकझोरनेवाली है. पथारकांडी निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव आयोग की गाड़ी बीच सड़क पर खराब हो गई.

उस वाहन में मतदान खत्म होने के बाद एकत्रित की गई 'ईवीएम' थीं. चुनाव आयोग का वाहन खराब होते ही वहां एक वाहन प्रकट हुआ. उस वाहन में चुनाव आयोग के अधिकारी 'ईवीएम' सहित बैठे व रवाना हुए. यह वाहन उसी निर्वाचन क्षेत्र के भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार कृष्णेंदु पॉल का था. वैसा यह संयोग है? 'ईवीएम' ले जाने के लिए निर्वाचन आयोग को दूसरा वाहन उस वक्त मिलता ही नहीं था? निर्वाचन आयोग की यह भूमिका संदिग्ध ही नहीं बल्कि लफंगेगिरीवाली है. इस पूरे प्रकरण से निर्वाचन आयोग और सत्ताधारी भाजपा का मुखौटा फट गया है.

निर्वाचन आयोग पक्षपाती है. यह सिद्ध करनेवाली घटनाएं रोज ही घट रही हैं. असम में भाजपा के एक और कद्दावर नेता हेमंत बिस्वा शर्मा पर चुनाव आयोग ने पहले 48 घंटे की प्रचारबंदी लगाई. इन महाशय ने कांग्रेस पार्टी के सहयोगी बोडोलैंड पीपुल्स पार्टी के प्रमुख हाग्रामी मोहिलारी को 'एनआईए' अर्थात राष्ट्रीय जांच एजेंसी से कहकर जेल में डलवाने की धमकी दी. अर्थात ये जो 'एनआईए' है यह मानो भाजपा के घर में चाकरी करनेवाली ही है और भाजपा के नेताओं के कहने पर उन्हें फंसाकर जेल में डाल सकते हैं. ऐसी धमकी इस हेमंत बिस्वा शर्मा द्वारा दिए जाते ही कांग्रेस ने उनकी शिकायत चुनाव आयोग से की.

चुनाव आयोग ने उन्हें 48 घंटों की प्रचारबंदी का आदेश दिया, लेकिन अब तुरंत 48 घंटों की बंदी को कम करके 24 घंटों पर ला दिया. इसलिए ये महाशय आजाद हो गए. यह सब निर्णय किसी के तो दबाव में, किसी को तो खुश करने के लिए ही लिए गए हैं. चुनाव आयोग के इतिहास के ये काले पन्ने हैं. लोकतंत्र को कलंकित करनेवाला यह कृत्य है. टीएन शेषन की याद पग-पग पर आए ऐसा कदाचार फिलहाल चुनाव आयोग कदम-कदम पर कर रहा है. पश्चिम बंगाल में युद्ध जैसी ही स्थिति निर्माण हो गई है. भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल जीतने के लिए पूरी शक्ति दांव पर लगा दी है यह ठीक है, परंतु उस शक्तिमान रथ के घोड़ों के रूप में चुनाव आयोग खुद ही जुआ से बंध जाए, यह सही नहीं है.

नंदीग्राम से ममता लड़ रही हैं. ममता वहां मतदान केंद्र पर मतदान के लिए पहुंचीं और वहां से उन्होंने राज्यपाल जगदीप धनकर को फोन करके शिकायत की, भाजपाई कार्यकर्ता नंदीग्राम में मतदान रोक रहे हैं, बाधा डाल रहे हैं. अर्थात गैर भाजपाशासित राज्यों के राज्यपाल से सत्य व न्याय की उम्मीद आखिर वैâसे की जाए? चुनाव आयोग, राज्यपाल ये संवैधानिक निष्पक्ष पद हैं. वहां संविधान का सम्मान होना चाहिए. यह उम्मीद अब इतिहास बन चुकी है. इसलिए तटस्थता अथवा निष्पक्षता के मूल्य नष्ट हो चुके हैं. नियमों का पालन न करना अथवा शासकों की इच्छा के अनुसार बर्ताव करना यह अब नौकरशाहों का कर्तव्य बन गया है, परंतु चुनाव आयोग जैसी संस्था को तो इस कीचड़ में नहीं फंसना चाहिए.

शेषन की बराबरी कोई नहीं कर सकता है, लेकिन उन्होंने जो आचार संहिता देश के लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए जीवित की, उसे किसी राजनैतिक स्वार्थ के लिए तो मत जलाओ. भारतीय आदर्श आचार संहिता का सार ऐसा है कि इस देश का कामकाज जोड़-तोड़ करके नहीं चलाया जा सकेगा. वह सिर्फ लोकतांत्रिक ढंग से ही चलाया जा सकेगा. इस देश का कामकाज आप एक समूह को सौंप देंगे तो भी नहीं चलेगा. ऐसा शेषन कहते थे. आज शेषन होते तो उन्हें मूर्ख अथवा महापागल ठहराकर उनकी सरकारी पेंशन भी बंद कर दी गई होती, परंतु शेषन ने चुनाव आयोग को उसकी शक्ति का एहसास दिलाया था.

लोगों को जागरूक किया. सोए हुए सिंह के जागने के कारण स्तंभ पर खड़े तीन शेरों के पांव के नीचे उकेरे गए 'सत्यमेव जयते!' यह विधान सत्य लगने लगा. आज लोगों का चुनाव पर से विश्वास खत्म हो गया है. नागरिकों का वोट निश्चित तौर पर अनमोल है परंतु आपके द्वारा दिए गए वोट निश्चित तौर पर किसे मिले, इस बारे में मतदाता को ही संदेह होता है. तब निर्वाचन आयोग अप्रभावी अथवा किसी के हाथ की कठपुतली बन गया है.यह विश्वास होता है.

असम और पश्चिम बंगाल की घटना से निर्वाचन आयोग की कार्यशैली पर शंका निर्माण हुई. बिहार में तेजस्वी यादव की पराजय कराई गई और मतगणना के आखिरी दौर में निर्वाचन आयोग ने आंख और कान बंद कर लिए, ऐसा लोगों के मन में है. यह दृश्य देश के लिए अच्छे नहीं हैं. 'ईवीएम' पर से बचा-खुचा विश्वास भी उड़ानेवाला यह प्रकरण है तथा निर्वाचन आयोग की झोलबाजी पर भी इससे मुहर ही लगती है. लोकतांत्रिक परंपरा की फिक्र थोड़ी भी शेष होगी तो इस सब पर संसद में तो चर्चा होनी चाहिए!

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