नई दिल्ली : भाजपा सांसद वरुण गांधी और उनकी मां व पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के बयान लंबे समय से पार्टी लाइन से हटकर आते रहे हैं, लेकिन लखीमपुर खीरी घटना के बाद, ट्वीट के माध्यम से जिस तरह से वरुण गांधी के बयान आए, उसे देखकर राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि क्या वरुण लखीमपुर खीरी से अपनी नई पारी खेलने की तैयारी कर रहे हैं. वरुण गांधी बयान के पीछे राजनीति कुछ और नजर आ रही है.
शिवसेना के मुखपत्र सामना में वरुण गांधी के लखीमपुर खीरी हिंसा मामले पर दिए गए वक्तव्य और रुख का समर्थन किया गया है. शिवसेना ने वरुण गांधी के बयानों का समर्थन तो किया ही है, साथ ही साथ उत्तर प्रदेश के अन्य सांसदों पर सवाल उठाते हुए यहां तक कह दिया है कि लखीमपुर खीरी की घटना से क्या अन्य सांसदों का दिल नहीं पसीजा, या क्या सांसदों का खून ठंडा पड़ चुका है?
इससे भी एक कदम आगे बढ़कर शिवसेना ने तो किसान संगठनों को वरुण गांधी के रुख का समर्थन करते हुए उनके लिए प्रशंसा प्रस्ताव तक पारित करने की सलाह दे डाली है.
शायद इसी राजनीति का इंतजार वरुण गांधी भी कर रहे थे और जिस तरह अब वरुण गांधी के वक्तव्य का शिवसेना ने खुलकर समर्थन किया है, उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि वरुण गांधी अब लखीमपुर खीरी घटना के बहाने पार्टी पर खुद के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई करने और खुद के लिए सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहे हैं.
यदि लखीमपुर खीरी के जनसंख्या समीकरण की बात की जाए तो यहां पर एक बड़ी आबादी सिखों की है और यह इलाका कहीं न कहीं पंजाब की राजनीति पर भी प्रभाव डालता है. यही वजह है कि लखीमपुर खीरी की घटना होते ही पंजाब के नेताओं का भी लखीमपुर में आकर सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन करने का सिलसिला जारी रहा.
हालांकि लखीमपुर खीरी घटना और वरुण गांधी के बयानों पर टिप्पणी करने पर भाजपा के तमाम नेताओं को आलाकमान की मनाही है, लेकिन नाम न लेने की शर्त पर पार्टी के एक वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय महासचिव ने कहा कि यदि वरुण गांधी के आए बयानों पर गौर किया जाए तो उन्होंने अपने ट्वीट के माध्यम से भले ही भाजपा के कुछ नेताओं पर तंज कसते हुए कहा है कि इस घटना को हिंदुओं और सिखों के बीच की राजनीति न बनाई जाए, लेकिन कहीं न कहीं ऐसा लगता है कि वरुण गांधी के इस ट्वीट के माध्यम से खुद ही इस बात को हवा देना चाहते हैं.