गोरखपुर : आदिशक्ति की आराधना को किसी दिवस विशेष तक सीमित नहीं किया जा सकता. नवरात्रि का पावन अवसर उन्हें भी श्रद्धाभाव से भर देता है जो नियमित पूजा अर्चना नहीं कर पाते हैं. शारदीय नवरात्रि में अंतिम के चार दिन उपासना से चमत्कारिक सिद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं. इन चार दिनों में सबसे अहम है महाषष्ठी को होने वाली कल्पारम्भ पूजा. मान्यता है कि कल्पारम्भ पूजा के माध्यम से मां आदिशक्ति का आवाहन करके प्रभु श्रीराम ने उनसे लंका विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया था. इस शारदीय नवरात्रि कल्पारम्भ पूजा 11 अक्टूबर को की जाएगी.
माना जाता है कि दुर्गोत्सव में कल्पारम्भ पूजा बिगड़ी काम बनाने वाली है. यह ऐसी आराधना है, जिसके करने के बाद ही मातारानी का प्रकटीकरण होता है. शारदीय नवरात्रि की महाषष्ठी तिथि को होने वाली यह विशेष पूजा एक प्रकार से आराधना के माध्यम से देवी दुर्गा के आमंत्रण और उनके अधिवास का अनुक्रम है. इस विशेष पूजा से मनवांछित फल प्राप्त करने के लिए इसे गोधूलि बेला में ही करना श्रेयस्कर होगा.
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पंडित सचिंद्र नाथ ने कहा, ऐसी मान्यता है कि गोधूलि के समय देवी देवताओं से की गई प्रार्थना अवश्य फलीभूत होती है. इस आराधना में कलश में जल और आम्रपत्र लेकर उसे बिल्वपत्र या बेलपत्र पर प्रतिष्ठित किया जाता है. बिल्वपत्र पर मां दुर्गा का वास होता है. साथ ही यह कलश नवरात्रि की पूर्णाहुति तक रखना बहुत महत्वपूर्ण है. जो भक्त किसी कारण से पहले दिन कलश स्थापना नहीं कर सके, वे कल्पारम्भ पूजा कर सकते हैं.
कल्पारम्भ पूजा के दौरान प्रयुक्त जल, आम्रपत्र और बिल्वपत्र आपके सभी बिगड़े काम बना सकते हैं. यदि पूजा के प्रारम्भ में ही आप मां से इस संबंध में मन्नत मांग लें. जिस भी कामना से संकल्प किया गया, पूजनोपरांत बिल्वपत्र से कलश के जल को उसी कामना से घर व प्रतिष्ठान में श्रद्धाभाव से छिड़कें. घर में बच्चों का मन पढ़ाई में न लग रहा हो तो इस जल की कुछ बूंदे उनके पठन पाठन की सामग्री पर भी दाल दें. व्यापार में लगातार नुकसान हो रहा हो या घर में तनाव का वातावरण रहता हो, कल्पारम्भ पूजा का जल ऐसी नकारात्मकता को दूर करने में बहुत सिद्ध होगा.
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