नई दिल्ली: पुरानी कहावत है कि राजनीति वह क्षेत्र है जहां ना किसी से स्थायी दोस्ती होती है और ना ही कोई स्थायी दुश्मन होता है. हाल में नागालैंड के राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर डालें तो एक बार फिर यह कहावत सटीक बैठती है. राकांपा के चीफ शरद पवार का भाजपा को समर्थन करना सबको हैरान करने वाला फैसला है. सवाल उठ रहा है कि क्या शरद पवार, जिनके बारे में प्रधानमंत्री मोदी संसद में कह चुके हैं कि उनकी उंगली पकड़ कर राजनीति सीखी, भाजपा के करीब जा रहे हैं?
वहीं, नागालैंड के इस राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर जानकारों का ये मानना है कि ये फैसला पार्टी के विजयी सात विधायकों के दबाव में किया गया है. वहीं चर्चा ये भी है कि पवार को ये फैसला इसलिए करना पड़ा क्योंकि उन्हें इस बात का डर सता रहा था कि कहीं ये सातों विधायक दूसरे खेमे में न चले जाएं.
पार्टी के जानकार सूत्रों का भी कहना है कि शरद पवार ने पार्टी की राज्य इकाई के दबाव में यह फैसला लिया है. हालांकि पार्टी ने अपने आधिकारिक बयान में यह कहा कि नागालैंड की व्यापक भलाई को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया है. सात मार्च को हुई बैठक में शरद पवार ने पिक्टो शोहे को नागालैंड में विधायक दल का नेता घोषित किया. शियो पहले NDPP में थे और इस बार टिकट नहीं मिलने पर एनसीपी में शामिल हो गए थे.
ओवैसी ने की आलोचना :एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने एनसीपी और उसके पार्टी प्रमुख शरद पवार की नागालैंड के विधायकों द्वारा नेफ्यू रियो को समर्थन देने की घोषणा के बाद आलोचना की है. एआईएमआईएम प्रमुख ने भाजपा के साथ गठबंधन का समर्थन करने वाले राकांपा की आलोचना की और कहा, 'अगर 'शरद' 'शादाब' होते तो उन्हें बी-टीम कहा जाता और 'धर्मनिरपेक्षों' के लिए अछूत कहा जाता. मैंने कभी भी भाजपा सरकार का समर्थन नहीं किया है और न कभी करूंगा लेकिन यह दूसरी बार है जब एनसीपी ने भाजपा का समर्थन किया है और यह आखिरी नहीं हो सकता है.'