नरसिंहपुर।शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का लंबी बीमारी के बाद रविवार को स्वामी का निधन हो गया. उन्होंने नरसिंहपुर जिले में परमहंसी झोतेश्वर में अंतिम श्वांस ली. सोमवार को लगभग शाम 4:00 बजे तक उन्हें समाधि दी जाएगी. वह नरसिंहपुर जिले के आश्रम में ही रह रहे थे. द्वारका की शारदा पीठ और ज्योर्तिमठ बद्रीनाथ के शंकराचार्य ने 2 सितंबर को ही अपना 99 वां जन्मदिन मनाया था. पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह समेत कई नेताओं ने उनके निधन पर शोक जताया है. Swami Swaroopanand Saraswati Died
2 सितंबर को मनाया था अपना 99वां जन्मदिन:झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की निधन की सूचना के बाद आश्रम में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी. शंकराचार्य ने 9 दिन पहले 2 सितंबर को अपना 99वां जन्मदिन मनाया था. निधन की खबर से उनके शोकाकुल है. आश्रम में लोग अंतिम दर्शन के लिए पहुंचने लगे. भारी पुलिस बल भी तैनात है. वीआईपी लोगों का आना शुरू हो गया है.
मध्य प्रदेश में जन्म, काशी में ली थी वेद-वेदांग और शास्त्रों की शिक्षा :शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्यप्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में पिता धनपति उपाध्याय और मां गिरिजा देवी के यहां हुआ. माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा. 9 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं, इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली. यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी.
दो मठों के शंकराचार्य थे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती:हिंदुओं को संगठित करने की भावना से आदिगुरु भगवान शंकराचार्य ने 1300 वर्ष पहले भारत के चारों दिशाओं में चार धार्मिक राजधानियां (गोवर्धन मठ, श्रृंगेरी मठ, द्वारका मठ एवं ज्योतिर्मठ) बनाईं. जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी दो मठों (द्वारका एवं ज्योतिर्मठ) के शंकराचार्य हैं. शंकराचार्य का पद हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है, हिंदुओं का मार्गदर्शन एवं भगवत् प्राप्ति के साधन आदि विषयों में हिंदुओं को आदेश देने के विशेष अधिकार शंकराचार्यों को प्राप्त होते हैं.
महाराज के निधन के बाद कौन होगा उत्तराधिकारी:ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्रमुख शिष्य दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती व अविमुक्तेश्वरानंद हैं. ऐसा माना जा रहा है कि इन्हें महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा जा सकता है. यह जानकारी शंकराचार्य आश्रम, परमहंसी गंगा क्षेत्र, झोतेश्वर के पंडित सोहन शास्त्री ने दी है. स्वामी सदानंद सरस्वती महाराज का जन्म नरसिंहपुर के बरगी नामक ग्राम में हुआ था. पूर्व नाम रमेश अवस्थी था. वह 18 वर्ष की आयु में शंकराचार्य आश्रम खिंचे चले आए. ब्रह्मचारी दीक्षा के साथ ही इनका नाम ब्रह्मचारी सदानंद हो गया. बनारस में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा दंडी दीक्षा दिए जाने के बाद इन्हें दंडी स्वामी सदानंद के नाम से जाना जाने लगा. सदानंद गुजरात में द्वारका शारदापीठ में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में कार्य संभाल रहे हैं. वहीं अविमुक्तेश्वरानंद नंद सरस्वती जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में हुआ था. पूर्व नाम उमाकांत पांडे था. छात्र जीवन में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रनेता भी रहे. वह युवावस्था में शंकराचार्य आश्रम में आए. ब्रह्मचारी दीक्षा के साथ ही इनका नाम ब्रह्मचारी आनंद स्वरूप हो गया. बनारस में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा दंडी दीक्षा दिए जाने के बाद इन्हें दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के नाम से जाना जाने लगा. वह उत्तराखंड बद्रिकाश्रम में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में ज्योतिषपीठ का कार्य संभाल रहे हैं. Swami Sadanand Saraswati Maharaj, Swami Avimukteshwarananda