जयपुर. हिंदू समाज सनातन परंपरा के प्रचार प्रसार करे, तो जल्द भारत पूरी तरह से हिंदू राष्ट्र बन जाएगा. ये कहना है तीन दिवसीय प्रवास पर जयपुर पहुंचे गोवर्धन पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती का. निश्चलानंद सरस्वती ने जयपुर में हिंदू धर्म दर्शन को बढ़ावा देने पर अपनी बात रखी. साथ ही उन्होंने कहा कि तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार का अयोध्या में मंदिर और मस्जिद बनाने का लक्ष्य (Nischalananda Saraswati on Ram Mandir) था. अगर वे साइन कर देते, तो मंदिर और मजिस्द उसी दौरान बन जाते. उन्होंने मक्का में मक्केश्वर महादेव होने और मोहम्मद साहब, ईसा मसीह के पूर्वजों को सनातनी वैदिक और हिंदू बताया.
शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि सबके पूर्वज सनातनी, वैदिक और हिन्दू थे. मोहम्मद साहब के पूर्वज कौन थे, ईसा मसीह के पूर्वज कौन थे, हिन्दू वैदिक सनातनी. पूर्वज तो सबके सनातनी वैदिक आर्य थे. इनके काल हैं या नहीं हैं. सनातन धर्म का समय है. इस कल्प में 1 अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार 122 वर्षों की हमारे यहां परम्परा है. वहीं उन्होंने राम मंदिर को लेकर कहा कि उनके अलावा सभी शंकराचार्यों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव सरकार के कहने पर रामालय ट्रस्ट पर दस्तखत कर दिए थे. इसका लक्ष्य अयोध्या में मंदिर और मस्जिद दोनों बनाना था. यदि उन्होंने हस्ताक्षर कर दिया होता, तो नरसिम्हा राव के शासनकाल में ही राम मंदिर के अगल-बगल और आमने-सामने मस्जिद बन गए होते.
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उन्होंने कहा कि अयोध्या में यथास्थान मंदिर बनाने का अभियान चला. प्रधानमंत्री ने भूमि पूजन कर शिलान्यास भी कर दिया. तब तक मुस्लिम पक्ष तटस्थ होकर देखता रहा. इन्होंने मंदिर का मानचित्र नक्शा भी बना लिया. अब मुस्लिम पक्ष को पार्लियामेंट, सुप्रीम कोर्ट और उत्तर प्रदेश शासन की ओर से 5 एकड़ भूमि वैध रूप से प्राप्त है. मक्का से भी बेहतर शैली में वे मस्जिद बना सकते हैं. इसका अभियान भी चला. उसी की नकल काशी और मथुरा में होगी. वर्तमान में मोदी-योगी यश ले रहे हैं, लेकिन देश को कहां ले जा रहे हैं, अब इसमें विस्फोट होगा कि नहीं?
शंकराचार्य निश्चलानंद ने कहा कि समान नागरिक संहिता का मतलब क्या है. विभाजन के बाद के स्वतंत्र भारत में मुसलमान, क्रिश्चियन, कम्युनिस्ट भी रहते हैं. जैन-बौद्ध, सिख भी रहते हैं. समान नागरिकता में आचार संहिता का स्वरूप क्या होगा. पहले शासन तंत्र यह स्पष्ट करे कि क्या मुसलमान, क्रिश्चियन, कम्युनिस्टों के सांचे-ढांचे में सनातनियों को ढलना होगा या कोई ऐसी व्यवस्था होगी, जिसमें सबको चलने के लिए बाध्य होना पड़ेगा. ऐसा स्पष्ट होने के बाद उस पर विचार करने की जरूरत है. जैसा व्यवहार हम दूसरों से अपने लिए चाहते हैं, वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करें. वसुधैव कुटुम्बकम और सर्वे भवन्तु सुखिन: समान नागरिकता के सूत्र हो सकते हैं.