लखनऊ :2004 में एक ऐसा मामला सामने आया था जिसने सभी को दहलाकर रख दिया था. दो भाईयों को तेजाब से नहला कर दर्दनाक मौत दी गई थी. इस घटनाको अंजाम देने वाला शक्स था मोहम्मद शहाबुद्दीन. इस मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे शहाबुद्दीन को कोरोना ने अपने पंजों में जकड़ लिया और आज सुबह दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली.
दो भाइयों को तेजाब से नहलाया
अगस्त 2004 में शहाबुद्दीन और उसके लोगों ने रंगदारी न देने पर सीवान के प्रतापपुर गांव में एक व्यवसायी चंदा बाबू के दो बेटों सतीश और गिरीश रोशन को तेजाब डालकर जिंदा जला दिया था. इसी मामले में शहाबुद्दीन समेत चार लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. इस मामले ने देश को हिला दिया था और पुलिस की भूमिका की भारी आलोचना हुई थी. क्योंकि पुलिस ने पीड़ित परिवार को ही सीवान छोड़ने की नसीहत दी थी. मामला एक विशेष अदालत में चला गया और शहाबुद्दीन को आजीवन कारावास की सजा हुई. नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद ही शहाबुद्दीन को जेल हुई थी, 2014 में शहाबुद्दीन ने राजीव रंजन को कोर्ट में पेशी से पहले ही मार दिया. 2016 में एक पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या कर दी गई. उसमें भी शहाबुद्दीन का नाम आया था.
शहाब का बढ़ता कद
अस्सी के दशक में बिहार का सीवान जिला तीन लोगों के लिए जाना जाता था. भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, सिविल सर्विसेज टॉपर आमिर सुभानी और ठग नटवर लाल. उसी वक्त एक और लड़का अपनी जगह बना रहा था. शहाबुद्दीन, जो कम्युनिस्ट और बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ खूनी मार-पीट के चलते चर्चित हुआ था. इतना कि शाबू-AK 47 नाम ही पड़ गया. 1986 में हुसैनगंज थाने में इस पर पहली FIR दर्ज हुई थी. आज उसी थाने में ये A-लिस्ट हिस्ट्रीशीटर है. मतलब वैसा अपराधी जिसमें सुधार कभी नहीं हो सकता.
शहाबुद्दीन का नाम आतंक का पर्याय
शहाबुद्दीन की अपराधों की लिस्ट बहुत लम्बी है. बहुत तो ऐसे हैं, जिनका कोई हिसाब नहीं है. जैसे सालों तक सीवान में डॉक्टर फीस के नाम पर 50 रुपये लेते थे. क्योंकि साहब का ऑर्डर था. रात को 8 बजने से पहले लोग घर में घुस जाते थे. क्योंकि शहाबुद्दीन का डर था. कोई नई कार नहीं खरीदता था. अपनी तनख्वाह किसी को नहीं बताता था. क्योंकि रंगदारी देनी पड़ेगी. शादी-विवाह में कितना खर्च हुआ, कोई कहीं नहीं बताता था. बहुत बार तो लोग ये भी नहीं बताते थे कि बच्चे कहां नौकरी कर रहे हैं. कई घरों में ऐसा हुआ कि कुछ बच्चे नौकरी कर रहे हैं, तो कुछ घर पर ही रह गए. क्योंकि सारे बाहर चले जाते तो मां-बाप को रंगदारी देनी पड़ती. धनी लोग पुरानी मोटरसाइकिल से चलते और कम पैसे वाले पैदल. लालू राज में सीवान जिले का विकास यही था.