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बेड पर ज्यादा समय बिताने वाले कोविड मरीजों को डिप्रेशन का खतरा

अस्पताल हो या घर, कोविड संक्रमित जिन मरीजों को बेड पर ज्यादा वक्त गुजारना पड़ा, उनके डिप्रेशन के शिकार होने की आशंका ज्यादा है. द लैंसेट पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित रिसर्च के अनुसार, ऐसे लोगों में डिप्रेशन के लक्षण ठीक होने के बाद 16 महीने तक बने रह सकते हैं.

Severe Covid linked to long-term adverse mental health risk: Lancet
Severe Covid linked to long-term adverse mental health risk: Lancet

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Published : Mar 15, 2022, 4:05 PM IST

Updated : Mar 15, 2022, 5:14 PM IST

लंदन :कोविड महामारी के दौरान संक्रमित लोग कई शारीरिक और मानसिक समस्याओं के शिकार हुए. कोविड के कई मरीज रिकवर होने के बाद भी डिप्रेशन और चिंता से ग्रसित हो गए. द लैंसेट पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित नई स्टडी के अनुसार महामारी के दौरान ऐसे लोग डिप्रेशन का शिकार भी हुए, जो कोविड -19 की चपेट में आने के बाद सात या उससे अधिक दिनों तक बेड पर पड़े रहे. डिप्रेशन की स्थिति उन लोगों में कम देखी गई, जो बीमार होने के बाद भी ज्यादा दिनों तक विस्तर पर नहीं थे.

स्टडी में यह सामने आया कि जिन लोगों को कोविड संक्रमण के बाद हॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ा, उनमें ठीक होने के बाद भी 16 महीनों तक डिप्रेशन के लक्षण आने की आशंका बनी रही. जिन मरीजों के लिए हॉस्पिटल में एडमिट होने की नौबत नहीं आई, वे दो महीने भीतर डिप्रेशन और चिंता से उबर गए. साथ ही रिसर्च में यह पाया गया कि सात या उससे अधिक दिनों तक बिस्तर पर समय गुजारने वाले कोविड मरीजों में डिप्रेशन और चिंता बढ़ने की संभावना 50-60 प्रतिशत अधिक होती है.

आइसलैंड विश्वविद्यालय से इंगिबजॉर्ग मैग्नसडॉटिर ने बताया कि हल्के लक्षणों वाले संक्रमित मरीजों के मेंटल हेल्थ सिम्टम्स से पता चलता है कि उसने जल्द रिकवरी कैसे की. कोविड संक्रमित गंभीर मरीज अपने पुराने मेंटल हेल्थ के इफेक्ट के कारण डिप्रेशन की ओर चले जाते हैं. उन्होंने बताया कि जिन मरीजों को संक्रमण के दौरान बिस्तर पर लंबा वक्त गुजारना पड़ता है, वह अपने हेल्थ पर पड़ने वाले प्रभावों पर ज्यादा चिंतित होते हैं. साथ ही सोशल कॉन्टैक्ट सीमित होने से उनके मन में असहाय होने की भावना भी विकसित हो जाती है. इस हालात के कारण मरीज डिप्रेशन की ओर चले जाते हैं.

इंगिबजॉर्ग मैग्नसडॉटिर ने स्टडी के बारे में बताया कि लॉन्ग टर्म मेंटल हेल्थ को परखने के लिए रिसर्चर्स ने 0-16 महीनों तक मरीजों की स्टडी की. इस दौरान उन्होंने इलाज के साथ लोगों में डिप्रेशन, चिंता, कोविड -19 संबंधित संकट और खराब नींद की स्थिति पर नजर रखी. इसके विश्लेषण के लिए डेनमार्क, एस्टोनिया, आइसलैंड, नॉर्वे, स्वीडन और यूके में सात समूहों में 247,249 लोगों के डेटा का अध्ययन किया. इसमें यह सामने आया कि जिन लोगों को लंबे इलाज की जरूरत पड़ी, उनमें डिप्रेशन और नींद की कमी की समस्या बनी रही. जो सामान्य इलाज से स्वस्थ हो गए, उनमें ऐसी समस्या नहीं दिखी.

आइसलैंड विश्वविद्यालय के के प्रोफेसर उन्नूर अन्ना वाल्दीमार्सडॉटिर के अनुसार, उन्होंने मेंटल हेल्थ सिम्टम्स का पता लगाने के लिए बीमारी के 16 महीने बाद तक शोध किया. इसमें यह सामने आया कि सभी मरीजों पर कोविड का मेंटल हेल्थ इफेक्ट एक समान नहीं है. मगर यह साबित हुआ कि बिस्तर पर बिताया गए समय ने मेंटल हेल्थ को प्रभावित जरूर किया. उन्होंने कहा कि हम महामारी के साथ तीसरे साल में प्रवेश करने वाले हैं. इस दौरान मेंटल हेल्थ के प्रभावित लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. लोगों को समय से इलाज और देखभाल सुनिश्चित करने के लिए यह शोध काफी महत्वपूर्ण है.

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Last Updated : Mar 15, 2022, 5:14 PM IST

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