लंदन :कोविड महामारी के दौरान संक्रमित लोग कई शारीरिक और मानसिक समस्याओं के शिकार हुए. कोविड के कई मरीज रिकवर होने के बाद भी डिप्रेशन और चिंता से ग्रसित हो गए. द लैंसेट पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित नई स्टडी के अनुसार महामारी के दौरान ऐसे लोग डिप्रेशन का शिकार भी हुए, जो कोविड -19 की चपेट में आने के बाद सात या उससे अधिक दिनों तक बेड पर पड़े रहे. डिप्रेशन की स्थिति उन लोगों में कम देखी गई, जो बीमार होने के बाद भी ज्यादा दिनों तक विस्तर पर नहीं थे.
स्टडी में यह सामने आया कि जिन लोगों को कोविड संक्रमण के बाद हॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ा, उनमें ठीक होने के बाद भी 16 महीनों तक डिप्रेशन के लक्षण आने की आशंका बनी रही. जिन मरीजों के लिए हॉस्पिटल में एडमिट होने की नौबत नहीं आई, वे दो महीने भीतर डिप्रेशन और चिंता से उबर गए. साथ ही रिसर्च में यह पाया गया कि सात या उससे अधिक दिनों तक बिस्तर पर समय गुजारने वाले कोविड मरीजों में डिप्रेशन और चिंता बढ़ने की संभावना 50-60 प्रतिशत अधिक होती है.
आइसलैंड विश्वविद्यालय से इंगिबजॉर्ग मैग्नसडॉटिर ने बताया कि हल्के लक्षणों वाले संक्रमित मरीजों के मेंटल हेल्थ सिम्टम्स से पता चलता है कि उसने जल्द रिकवरी कैसे की. कोविड संक्रमित गंभीर मरीज अपने पुराने मेंटल हेल्थ के इफेक्ट के कारण डिप्रेशन की ओर चले जाते हैं. उन्होंने बताया कि जिन मरीजों को संक्रमण के दौरान बिस्तर पर लंबा वक्त गुजारना पड़ता है, वह अपने हेल्थ पर पड़ने वाले प्रभावों पर ज्यादा चिंतित होते हैं. साथ ही सोशल कॉन्टैक्ट सीमित होने से उनके मन में असहाय होने की भावना भी विकसित हो जाती है. इस हालात के कारण मरीज डिप्रेशन की ओर चले जाते हैं.