नई दिल्ली:नवरात्री का सातवां दिन मां कालरात्रि को समर्पित है. इस दिन देवी दुर्गा की 7वीं शक्ति देवी कालरात्रि की उपासना होती है. दुष्टों का विनाश करने वाली मां कालरात्रि को वीरता और साहस का प्रतीक माना जाता है. जिनका रूप रौद्र और विकराल है. मान्यता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने से व्यक्ति पर आने वाले आकस्मिक संकटों से रक्षा होती है.
मां कालरात्रि से जुड़ी पौराणिक कथा
मां का यह स्वरूप शत्रु और दुष्टों का संहार करने वाला है. देवीभागवत पुराण के अनुसार शुंभ निशुंभ तथा रक्तबीज नाम के राक्षसों ने स्वर्ग लोक में त्राहिमाम मचा दिया था. उनके भय से सभी देवता कैलाश पर्वत पर भगवान शिव से सहायता मांगने गए. तब भगवान शिव ने माता पार्वती से देवताओं की रक्षा करने का अनुरोध किया. माँ पार्वती ने अपने तेज से माँ दुर्गा को प्रकट किया जिन्होंने राक्षसों की सेना के साथ युद्ध किया. माँ ने शुंभ निशुंभ राक्षस का वध कर दिया लेकिन जब रक्तबीज का वध किया तब उसके शरीर से निकली रक्त की बूंदे भूमि पर गिरी. उस राक्षस के रक्त की जितनी भी बूंदे भूमि पर गिरी उससे उतने ही रक्तबीज राक्षस बनते गए
रक्तबीजों की एक एक बूदे से और रक्तबीज बनते गए.यह देखकर दुर्गा माँ ने अपनी शक्ति से एक और माता को उत्पन्न किया. जिनका नाम कालरात्रि था. माता अपना भयंकर रूप लिए हुए थी. उसके बाद जैसे ही माँ दुर्गा रक्तबीज का वध करती तो उसके शरीर के रक्त की बूंदे माँ कालरात्रि भूमि पर गिरने से पहले ही पी जाती. इस प्रकार माँ दुर्गा ने एक एक कर सभी रक्तबीज राक्षसों का वध कर दिया
मां कालरात्रि का स्वरूप
मां कालरात्रि की स्वरूप की बात करें तो मां का रूप रौद्र और विकराल है. गर्दभ की सवारी, काला रंग,खुले केश,गले में मुंडमाला, एक हाथ वर मुद्रा में, एक हाथ अभय मुद्रा में एक हाथ में लोहे का कांटा एक हाथ में खड्ग है.