काशी हिंदू विश्वविद्यालय के नए शोध पर संवाददाता प्रतिमा तिवारी की खास रिपोर्ट वाराणसीः अगर आपसे यह कहा जाए कि आपकी गंभीर बीमारियों का इलाज गंगाजल, गोमूत्र व सीवर के पानी से किया जाएगा तो आप हैरान हो जाएंगे. मगर, अब हैरान होने की जरूरत नहीं है. यह हकीकत है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में बैक्टीरियोफेज थेरेपी की शुरुआत की गई है, जिसके तहत गंगाजल, गोमूत्र और सीवर के पानी से कुछ गंभीर बीमारियों का इलाज किया जा रहा है.
यह वह बीमारियां हैं जिन पर एंटीबायोटिक भी असर नहीं करती है. ऐसे में अब BHU में देश का पहला बैक्टीरियोफेज थेरेपी रिसर्च सेंटर भी स्थापित करने का प्लान तैयार किया गया है. इसके लिए 15 करोड़ की फंडिंग होगी. बनारस के ही एक मरीज मधुमेह की बीमारी से पीड़ित थे. करीब 15 साल से अधिक हो गए थे इस बीमारी को. करीब 7 साल पहले उनके पैर के तलवे में एक गहरा घाव हो गया था.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के नए शोध में क्या है खास घाव इतना गंभीर था कि किसी भी एंटी बायोटिक का असर नहीं हो रहा था. बहुत दवाएं की गईं, लेकिन कोई असर नहीं हुआ. इसके बाद वह साल 2019 में बीएचयू पहुंचे. यहां माइक्रोबायोलॉजी विभाग में उनकी बैक्टीरियोफेज थेरेपी शुरू की गई. उनका ये इलाज करीब तीन महीने चला था. अब उनका घाव भर गया है. वह ठीक हैं. ये सिर्फ एक मामला है. ऐसे न जाने कितने मरीजों को बीएचयू के डॉक्टर्स ने ठीक कर दिया है.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के नए शोध की खास बातें सीवर के पानी और गोमूत्र में मिलता है बैक्टीरियोफेजः ईटीवी भारत ने इस पूरे रिसर्च को लेकर माइक्रोबायलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो गोपलनाथ से बात की. उन्होंने बताया, 'कुछ बैक्टेरिया ऐसे होते हैं जो गंभीर घाव करते हैं और उन पर बहुत सारे एंटी बायोटिक काम नहीं करती हैं. उन एंटी बायोटिक के बाद बैक्टीरियोफेज जो सीवर के पानी में मिलता है या गोमूत्र, व अन्य जानवरों के मूत्र में मिलता है उसका नंबर बढ़ाकर उसका लेप लगाया जाता है या फिर उससे ड्रेसिंग करते हैं तो उससे जो घाव तीन महीने से ज्यादा पुराना है या तीन साल पुराना है वह ठीक हो जाता है. ये बैक्टेरिया को खत्म कर देते हैं. इसको लेकर किए जा रहे शोध का दस साल बाद परिणाम आना शुरू हुआ था.'
BHU के नए शोध पर काम करने वाले में प्रो गोपलनाथ अब तक 1000 से अधिक मरीजों का इलाज हुआःमाइक्रोबायलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो गोपलनाथ कहते हैं, 'अभी हम इसे रेगुलर चला रहे हैं. सर्जरी डिपार्टमेंट के कोलैबरेशन में क्लीनिक चल रही है. यह मानकर चला जा सकता है कि इस शोध में हमारी 96 फीसदी सफलता है. हमने इस तरीके के 1000 से अधिक मरीजों पर इसका शोध किया है. सीवर का पानी, गोमूत्र या गंगाजल में जो बैक्टिरियो फ्रेजेस हैं ये बैक्टीरिया के वायरस हैं. इनका सोर्स नदी के पानी में या सीवर में आदमी और जानवर ही हैं. जहां बैक्टेरिया रहेगा वहां वायरस रहते हैं.' उन्होंने बताया, 'हम लोग इस प्रकृति की जो व्यवस्था है उस व्यवस्था में वायरस का नंबर बढ़ाकर उनको इलाज के लिए प्रयोग करते हैं.'
BHU के नए शोध में सीवर के पानी और गोमूत्र को सुरक्षित फ्रीजर में रखा जाता है एडवांस रिसर्च सेंटर के लिए 15 करोड़ की फंडिंगःप्रो. गोपालनाथ ने बताया, 'इंडियन मेडिकल काउंसिल के डायरेक्टर जनरल राजीव बहल ने एक ब्रेन स्टॉर्मिंग के लिए 15 जून को बुलाया था. पूरे देश से 6-7 के आसपास वैज्ञानिक इकट्ठा हुए थे. वहां ऐसा था कि अगर प्रपोजल जाता है और ठीक लगता है तो एडवांस रिसर्च सेंटर के लिए 15 करोड़ तक की फंडिंग हो सकती है. हमने प्रपोजल जमा कर दिया है. हम चाहते थे कि बीएचयू में एक इस तरह की फैसिलिटी तैयार की जाए. ऐसा होने से बीएचयू तो नंबर वन हो ही जाएगा. इस क्षेत्र में हम लोगों ने जितना काम किया है अभी कोई और नहीं कर रहा है. यहां पूरे देश से मरीज आते हैं.'
BHU में नए शोध पर काम करते प्रोफेसर लैब में तैयार होगा विषाणु का घोल और पाउडरः नई दिल्ली स्थित इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने देश का पहला बैक्टीरियोफेज थेरेपी एंड रिसर्च सेंटर (ए सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में स्थापित करने के लिए कहा है. इसके लिए बाकायदा प्रोजेक्ट तैयार किया गया है. इसकी स्थापना के लिए विश्वविद्यालय परिसर में जमीन की तलाश की जा रही है. डॉक्टर्स का कहना है कि इस लैब में जानवरों व इंसानों के मूत्र से, सीवर के पानी आदि से विषाणु का घोल और पाउडर तैयार किया जाएगा. इसके बाद उसका इस्तेमाल दवा के रूप में किया जाएगा. लैब में तैयार हो रही दवाओं को देशभर के अस्पतालों में उपलब्ध कराया जाएगा.
BHU के नए शोध में सीवर के पानी और गोमूत्र से इलाज किया जा रहा कैसे तैयार की जाएगी दवाः सीवर के पानी, गोमूत्र, इंसान के मूत्र, गंगाजल का बैक्टेरिया कल्चर किया जाएगा. इस दौरान उसमें वायरस की संख्या का इजाफा किया जाएगा. इस प्रक्रिया के दौरान वायरस को अलग-अलग करके शुद्ध किया जाएगा, जिससे कि उसमें बैक्टेरिया का कुछ भी अंश न रह जाए. इसके बाद तैयार हुए वायरस का घोल व पाउडर बनाया जाएगा. इसका इस्तेमाल घाव, पेट, हड्डी व आंख-कान के संक्रमण के लिए किया जा सकेगा. सेप्टिसीमिया, डायबिटीज फुट, निमोनिया, मस्तिष्क ज्वर, टायफाइड के साथ ही उन रोगों का भी इलाज किया जा सकेगा, जिनमें एंटी बायोटिक काम नहीं करती हैं.
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