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नए संसद में सेंगोल, विपक्षी पार्टियों ने परंपरा पर उठाए सवाल

नए संसद भवन का उद्घाटन आज है. इस मौके पर सेंगोल परंपरा फिर से स्थापित की जा रही है. भाजपा ने इसे हिंदू परंपरा का हिस्सा ठहराया है, जबकि कांग्रेस ने इसे बोगस करार दिया. सपा और वाम दलों के नेताओं ने भी सेंगोल परंपरा पर सवाल उठाए हैं.

Sengol in the new parliament
नए संसद में सेंगोल

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Published : May 28, 2023, 12:31 AM IST

नई दिल्ली : सेंगोल का मतलब – राजदंड होता है. यह एक प्रकार की छड़ी होती है. पुराने समय में राजाओं और महाराजाओं के समय में इसका उपयोग किया जाता था. यह न्याय और निष्पक्षता का प्रतीक समझा जाता था. आम तौर पर जब भी सत्ता का हस्तांतरण किया जाता था, तो इसे इसके जरिए हस्तांतरित किया जाता था. साथ ही यह जिसके पास रहता था, उससे न्याय प्रिय होकर शासन करने की उम्मीद की जाती थी.

सेंगोल

आजादी के समय भी इसका प्रयोग किया गया था. देश के गृह मंत्री अमित शाह ने इस बाबत जानकारी देते हुए कहा था कि इस परंपरा को फिर से स्थापित किया जाएगा. आजादी के समय लॉर्ड माउंटबेटन ने इसके जरिए ही औपचारिकता पूरी की थी. नेहरू को इस संबंध में सी राजगोपालचारी ने सुझाव दिया था. कहा जाता है कि चोल राजवंश में इस परंपरा का निर्वहन किया जाता था.

पुजारी से सेंगोल ग्रहण करते पीएम मोदी

हालांकि, कांग्रेस ने इस परंपरा पर ही सवाल उठा दिए. कांग्रेस ने इसे बोगस तक बता दिया. पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि सेंगोल परंपरा का कोई भी साक्ष्य नहीं है. रमेश ने कहा कि जब तक कोई डॉक्यूमेंट न हो, तब तक इसे कैसे सच माना जा सकता है. कांग्रेस की इस प्रतिक्रिया के बाद ही अमित शाह ने कहा था कि कांग्रेस को हिंदू परंपराओं से आखिर इतनी घृणा क्यों होती है. कांग्रेस ने उसका भी प्रतिवाद किया जब किसी ने इसे नेहरू की वाकिंग स्टिक बता दी.

पुजारियों ने पीएम मोदी को सेंगोल सौंपा

समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान ने इस परंपरा को धर्म से जोड़ा. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार यहां पर जानबूझकर सेंगोल मुद्दे को उठा रही है. रहमान ने कहा कि संसद सबकी है और पुरानी संसद में भी कोई दिक्कत नहीं थी. उसके ऊपर से सेंगोल को उठाकर मोदी सरकार हिंदू परंपरा थोप रही है.

सेंगोल का अपना इतिहास है

सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य न कहा कि सेंगोल राजदंड, राजतंत्र का प्रतीक था. आज देश में लोकतंत्र है, लोकतंत्र में राजतंत्र के प्रतीक सेंगोल का क्या काम? सेंगोल के प्रति भाजपा सरकार की दीवानगी इस बात का प्रमाण है कि इसको लोकतंत्र में विश्वास नहीं है, इसलिए भाजपा लोकतंत्र से हटकर राजतंत्र के रास्ते पर जा रही है जो लोकतंत्र के लिये खतरे की घंटी है.

छड़ी के रूप में रखा पेंगोल

केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि 25 अगस्त 1947 में प्रकाशित टाइम पत्रिका के अंक में भी सेंगोल परंपरा की खबर छपी थी.

जयराम रमेश ने इसका विरोध किया, उन्होंने कहा कि टाइम मैगजीन में जो खबर छपी थी, वह सेंगोल के बारे में जरूर है, लेकिन यह नहीं लिखा है कि नेहरू ने भी ऐसा किया था. रमेश ने फ्रीडम एट मिडनाइट और थॉस ऑन लिंग्विस्टिक स्टेट्स बुक का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि इन किताबों में भी नेहरू द्वारा सेंगोल परंपरा के निर्वहन की चर्चा नहीं की गई है. सपा नेता अखिलेश यादव ने कहा कि ऐसा लगता है कि भाजपा ने अपनी हार मान ली है, तभी तो वह सेंगोल परंपरा का पालन करने पर आमादा है.

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