दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

आत्मनिर्भरता का मार्ग है वर्षा जल संचयन

दुनिया की आबादी में भारत की हिस्सेदारी 18 फीसदी और विश्व की पशु आबादी में 15 फीसदी भागीदारी है. लेकिन हमारे पास जल संसाधन मात्र चार फीसदी हैं. प्रदूषण की वजह से हमारे जल स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं. ऐसे में जरूरत है तो जल संरक्षण पर व्यापक कार्रवाई की. हम कितने कामयाब होंगे, यह तो आने वाले समय में ही पता चल पाएगा.

etv bharat
कॉन्सेप्ट फोटो

By

Published : Mar 24, 2021, 6:01 AM IST

Updated : Mar 24, 2021, 2:55 PM IST

हैदराबाद : जल दुनिया के सभी प्राणियों के लिए ही नहीं, बल्कि हरियाली के प्रसार और सभी देशों के निरंतर विकास के लिए जीवन का स्रोत है. ऐसे समय में जबकि दुनिया भर में 210 करोड़ लोगों के पास सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है और 40 प्रतिशत आबादी पानी की कमी का सामना कर रही है, संयुक्त राष्ट्र ने 2018-2028 के काल को 'एक्शन ऑन वाटर' का दशक घोषित किया है.

दुनिया की आबादी में भारत की हिस्सेदारी 18 फीसदी और विश्व की पशु आबादी में 15 फीसदी की हिस्सेदारी है. लेकिन जल संसाधन में हमारी भागीदारी मात्र चार फीसदी है.

भारत में औसत बारिश 1170 मिलीमीटर होती है. लेकिन इसका पांचवां हिस्सा भी हम सुरक्षित नहीं कर पाते हैं. करीब 60 फीसदी आबादी पानी की कमी का सामना कर रही है.

नीति आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2030 तक पानी की खपत दोगुनी और 2050 तक पानी की कमी की वजह से जीडीपी छह फीसदी कम हो जाएगी. इन अनुमानों की पृष्ठभूमि में केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने एक व्यापक कार्य योजना बनाई है. इसे इसी साल के नवंबर तक लागू करना है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भरोसा दिया है कि मनरेगा के तहत खर्च होने वाली पूरी राशि बारिश के पानी को संचय करने में लगाई जाएगी. इसे देश के सभी 734 जिलों के छह लाख गांवों में लागू किया जाएगा.

256 जिलों के 1592 प्रखंडों में भूजल स्तर नीचे जा चुका है. ये जिले मुख्य रूप से तमिलनाडु, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और अन्य राज्यों में हैं. वर्षा जल संचयन, जल स्रोतों का पुनरुद्धार, शुद्धिकरण, अपशिष्ट पानी का पुनः प्रयोग, पौधों को लगाना और इससे संबंधित कार्यों को चरणबद्ध तरीके से लागू किए जाने की जरूरत है.

अगर दृढ़ मन, संकल्प और एक होकर आगे बढ़ा जाए, तो कुछ भी असंभव नहीं है. हमसब लोगों ने सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए टैंक के बारे में पढ़ा है. इसका सिंचाई के लिए उपयोग होता था. ये तो उस समय की बात थी. आज तो पानी के मूल स्रोत को ही प्रदूषित किया जा रहा है. हमलोगों ने अपने हाथों से जल स्रोतों को बर्बाद कर दिया. अपने स्वार्थ के लिए जमीन का दोहन किया.

भारत में करीब 450 नदियां बहती हैं. इनमें से आधी नदियों के पानी उपयोग लायक नहीं हैं. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पानी प्रदूषित न हों. एक अनुमान के मुताबिक करीब 3600 करोड़ लीटर प्रदूषित एफ्लूएंट्स हमारे जल स्रोतों को प्रभावित कर रहा है. अगर तेलंगाना सरकार युद्ध स्तर पर काम कर सकती है, जल स्रोतों को बचाने का काम कर सकती है, तो यह दूसरी सरकारों के लिए मुमकिन क्यों नहीं हो सकता है.

50 साल पहले की स्थिति से तुलना करें, तो बारिश में 24 फीसदी तक कमी आ चुकी है. जलवायु परिवर्तन की वजह से अभूतपूर्व बाढ़ और सूखे जैसी स्थिति बार-बार उत्पन्न हो जाती है. प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता लगातार घट रही है. पर्यावरण को चुनौती देने वाले कई कारक हैं, जिसने पूरे देश को आगोश में ले लिया है. केंद्र, राज्य और स्थानीय इकाई मिलकर ही जल के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की स्थिति प्राप्त कर सकता है.

जल संरक्षण को लेकर जो भी काम किए जा रहे हैं, जो भी खर्च हो रहा है, उसमें पारदर्शिता बरतने की जरूरत है. सारे आंकड़े सार्वजनिक किए जाने चाहिए. जो भी कर्मी जिम्मेवार हैं, उन्हें उत्तरदायी बनाने की जरूरत है.

भारत बेहतर स्थिति में आ सकता है, यदि यह 428 टीएमसी बारिश के पानी में से आधे को भी प्रबंधित करने में कामयाब हो जाता है. बारिश का इतना पानी बर्बाद हो जाता है. संरक्षित करने के लिए उसे वैज्ञानिक विधि अपनानी होगी. सिंगापुर और इजरायल दोनों देशों ने इसी तरह से जल स्रोतों को संरक्षित किया है. अरब देशों ने उन तकनीकों का प्रयोग किया है, जिसकी वजह से अपशिष्ट पानी के 70 फीसदी हिस्से को पुन उपयोग में लाया जा सकता है.

Last Updated : Mar 24, 2021, 2:55 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details