कूनो में चीतों की मौत का मामला : सुप्रीम कोर्ट ने कहा-'केंद्र के प्रयासों पर अविश्वास का कोई कारण नहीं' - चीतों की मौत का मामला
अफ्रीकी देशों से लाए गए चीतों की मौत को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है. सोमवार को शीर्ष कोर्ट ने कहा कि केंद्र के इस बयान पर अविश्वास करने की कोई वजह नहीं है कि वह उन्हें बचाने के पूरे प्रयास कर रहा है.
कूनों में चीतों की मौत का मामला
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Published : Aug 7, 2023, 6:28 PM IST
नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि उसे केंद्र के इस बयान पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं दिखता कि वह चीतों की मौत को रोकने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहा है (SC on cheetah deaths).
इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि इस क्षेत्र को एक्सपर्ट के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए क्योंकि इस मामले में अदालत के पास कोई विशेषज्ञता नहीं है.
न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने नोट किया कि सरकार ने एक हलफनामा पेश किया है जिसमें कहा गया है कि स्थानांतरित किए गए 20 चीतों में से 14 अभी भी जीवित हैं. 6 की मौत हो गई है. सरकार ने तर्क दिया है कि चीता की मौत के संबंध में मीडिया ने गलत रिपोर्ट प्रकाशित की है.
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रही अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अदालत के समक्ष दलील दी कि जो तीन अतिरिक्त मौतें दिखाई गई हैं, वे स्थानांतरित चीतों के शावकों की हैं. केंद्र ने कहा कि चीता विशेषज्ञों के एक अंतरराष्ट्रीय पैनल के अलावा 11 विशेषज्ञों की एक एक्सपर्ट कमेटी पहले से ही बनाई जा चुकी है. शीर्ष अदालत ने पाया कि केंद्र ने बयान दिया है कि चीतों की मौत को रोकने के लिए चीता पैनल के सभी अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों से सलाह ली जा रही है.
शीर्ष कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि 'हमें हलफनामे पर दिए गए बयान पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं दिखता...यदि वह क्षेत्र है जिसे विशेषज्ञों के लिए छोड़ देना बेहतर है, क्योंकि हमारे पास उस क्षेत्र में कोई विशेषज्ञता नहीं है. क्या किसी विशेष व्यक्ति को समिति में नामांकित करने की आवश्यकता है...यह एक ऐसा मामला है जो विशेष रूप से संघ के क्षेत्र में है.'
सुप्रीम कोर्ट कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों की मौत से संबंधित एक आवेदन पर सुनवाई कर रहा है. इसमें दावा किया गया है कि केंद्र चीतों की मौत को रोकने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठा रहा है. हालांकि चीता एक्सपर्ट का एक अंतरराष्ट्रीय पैनल बनाया गया है लेकिन इस पैनल से राय नहीं ली गई है.
1952 में देश से इस प्रजाति को विलुप्त घोषित किए जाने के बाद इन्हें फिर से बसाने के लिए चीतों को पार्क में लाया गया था. सुनवाई के दौरान भाटी ने जोर देकर कहा कि सरकार विशेषज्ञों से परामर्श कर रही है और नई स्थितियों पर प्रतिक्रिया दे रही है और सभी कदम उठा रही है. यहां तक कि 50% (जीवित रहने की दर) भी काम करेगी.
भाटी ने कहा कि चीतों को यहां की परिस्थितियों के अनुकूल बनाने के लिए प्रयास किए गए हैं और परियोजना अच्छी तरह से प्रगति कर रही है. उन्होंने कहा कि सरकार तथ्यात्मक रूप से गलत मीडिया रिपोर्टों पर डेटा के साथ संबोधित करेगी. साथ ही उन्होंने बताया कि चीतों की मौत की संख्या में वृद्धि पैदा हुए शावकों की मौत को शामिल करने के कारण थी.
20 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक साल से भी कम समय में दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से कुनो नेशनल पार्क (केएनपी) लाए गए 40 प्रतिशत चीतों की मौत प्रोजेक्ट चीता की 'अच्छी तस्वीर' पेश नहीं करती है. सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था केंद्र सरकार यह जांच करे कि क्या जानवरों को विभिन्न अभयारण्यों में स्थानांतरित करना संभव है.