पटना: सूर्योदय से पहले ही लोग अपने-अपने घरों से घाटों को जाने के लिए निकल पड़ते हैं. कृष्णपक्ष के चंद्रमा में होने के चलते आकाश में कालिमा छाई रहती है. जिस घाट से शाम को सूर्यदेव को अर्घ्यदिया गया था, सुबह भी उसी घाट से उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिए जाने की परंपरा है.
सूर्य को दूसरा अर्घ्य देने के साथ ही छठ का समापन:छठ के दौरान शुद्धता का खास ध्यान रखा जाता है. नहाय खाय, खरना, शाम का अर्घ्य और सुबह के अर्घ्य के दौरान शुद्धता और पवित्रता का खास ध्यान रखा जाता है. व्रती बांस से बनी टोकरियों को एक अस्थाई मंडप के नीचे रखते हैं ताकि वह सुरक्षित रहे. इस मंडप को गन्ने की टहनियों से बनाया जाता है.
मंत्रोच्चार से गूंजा वातावरण:साथ ही एक विशेष सांचा बनाकर इसके कोनों को मिट्टी से बने हाथी और दीपक की आकृतियों से संवारा जाता है. व्रती और उनके परिवार के सदस्य नदी या जलाशय में कमर भर पानी में खड़े होकर भगवान भास्कर के उगने का इंतजार करते हैं. जैसे ही सूर्य की किरणों उदित होती हैं, साड़ी व धोती पहने स्त्री पुरुष सूर्य की आराधना करते हैं. इस दौरान मंत्रोच्चार भी किया जाता है.
अर्घ्य के समय इन बातों का रखें ख्याल: सूर्य को पूर्व दिशा की ओर मुंह करके अर्घ्य अर्पित करना चाहिए. छठी माई को याद करते हुए महिलाएं अपने परिवार की सुख समृद्धि का आशीर्वाद मांगती हैं और प्रसाद खाकर 36 घंटे के निर्जला व्रत का पारण करती हैं. इसके साथ ही छठ का समापन हो जाता है.
छठ मनाने के पीछे की मान्यता क्या है?:मान्यताओं के अनुसार छठ देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन है, उनको प्रसन्न करने के लिए इस पर्व को मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस बात का जिक्र है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया.
सूर्योदय का समय: सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया. इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है. प्रकृति का छठा अंश होने के चलते इनका नाम षष्ठी पड़ा, जिसे छठी मईया के नाम से भी जाना जाता है. आज सूर्योदय का समय 06:47 बजे है. हालांकि कि विभिन्न स्थानों में समय-समय अलग-अलग हो सकते हैं.