ग्वालियर। राजशाही से राजपथ तक और सिंहासन से सियासत तक ये सफर ये फैसले आसान नहीं होते, लेकिन आजादी के बाद बहुत सारे खानदान सियासत में शुमार होने के लिये आ गये. जहां कुछ रियासतों को कामयाबी मिली और कुछ इतिहास के पन्ने में गुम हो गये, लेकिन ग्वालियर का एक शाही खानदान ऐसा भी है. जिसकी तीन पीढ़ियां शाही ठाठ का त्याग कर राजनीति के क्षेत्र में कार्य कर रही है. हम बात कर रहे हैं सिंधिया वंश की. जिसकी तीन पीढ़ियों का देश और प्रदेश की राजनीति में अहम योगदान रहा है.
हमेशा से सिंधिया राजवंश की पीढ़ी ने राजनीति में किंग नहीं बल्कि किंग मेकर की भूमिका में आगे रहे हैं, तो पढ़िए ग्वालियर संवाददाता अनिल गैर की सिंधिया वंश की सियासी इतिहास के इस महल की कहानी...
सिंधिया राजवंश की कहानी: सिंधिया राजवंश ने 1947 तक भारत के स्वतंत्रता तक ग्वालियर पर शासन किया. तब महाराजा जीवाजीराव सिंधिया ने भारत में अपनी रियासत को विलय करने की मंजूरी तत्कालीन प्रधानमंत्री को दे दी. ग्वालियर अन्य रियासतों के साथ विलय के साथ मध्य भारत का नया राज्य बन गया और जाॅर्ज जीवाजीराव ने राज्य प्रमुख के रूप में 28 माई 1948 से 31 अक्टूबर 1956 तक कार्य किया. जीवाजीराव सिंधिया आजादी के बाद स्वतंत्र भारत में किसी राजवंश परिवार के पहले राजनीतिक हस्ती थे और देश के प्रधानमंत्री नेहरू के काफी करीबी माने जाते थे.
विजयाराजे सिंधिया को राजनीति में उतारा: नेहरू भी इस बात को जानते थे. कोई भी राजवंश हस्ती का सीधा संबंध जनता से होता है, इसलिये उन्होंने जीवाजीराव सिंधिया से उनकी पत्नी विजयाराजे सिंधिया को कांग्रेस में शामिल होने के लिये कहा. विजयाराजे सिंधिया को कांग्रेस में शामिल करने के बाद चुनावी रण में उतारने के लिये तैयार किया. विजयाराजे सिंधिया 1957 में पहली बार चुनावी रण में उतरीं और विजयी हुईं, लेकिन 1962 में महाराजा जीवाजीराव सिंधिया का देहांत हो गया.
विजयाराजे के बाद माधवराव ने लड़ा चुनाव: 1962 में राजमाता विजयाराज सिंधिया लोकसभा के लिये निर्वाचित हुईं और इस प्रकार सिंधिया परिवार की चुनावी राजनीति में जीवन यात्रा प्रारंभ हुई. वह 1967 और 1962 , 1967, 1971, 1978 और 1989 और 1990 के चुनाव में रिकार्ड तोड़ जीत हासिल की. राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस के कई दिग्गज जैसे महेंद्र सिंह कालूखेड़ा और केपी सिंह को चुनावी रण में मात दी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की प्रभावशाली नेता होने के बावजूद भी उनके पुत्र माधवराव सिंधिया 1971 में कांग्रेस पार्टी से चुनाव लडे़ और लोकसभा के लिये निर्वाचित हुए. 25 जनवरी 2001 में उनका निधन हो गया. माधवराव सिंधिया भी केंद्र की राजनीति में पहले ऐसे व्यक्ति थे. जिन्होंने ग्वालियर के साथ-साथ प्रदेश का प्रतिनिधत्व किया. कई मंत्री पदों पर रहकर ग्वालियर के लिये कार्य किया.