उत्तराखंड:ऐसा माना जा रहा है कि अगर तीसरा विश्व युद्ध (third world war) हुआ तो उसके पीछे की सबसे बड़ी वजह जल संकट होगा. इसके पीछे वैज्ञानिक विश्व भर में तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर (fast melting glaciers) और उससे पड़ने वाले प्रतिकूल असर को मानते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि जिस तेजी के साथ उच्च हिमालय के ग्लेशियर पिघल रहे (Glaciers of the High Himalayas are melting) हैं, उससे नदियों वाले हिमालय रीजन में आने वाले सालों में पानी का संकट गहरा सकता है. इसका असर हिमालयी राज्यों पर तो पड़ेगा ही साथ ही भारत के पड़ोसी देशों में भी इसका असर देखने को मिलेगा. इसके पीछे वैज्ञानिकों का अपना मत है. वैज्ञानिक मानते हैं कि इस संकट से बचने के लिए ठोस एक्शन लेने की जरूरत है.
जंगलों में अतिक्रमण से खतरा: हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय गढ़वाल विवि (Hemwati Nandan Bahuguna Central Garhwal University) का उच्च शिखरिय पादप शोध संस्थान (High Peak Plant Research Institute) उत्तराखंड के उच्च स्थानों में पादपों पर शोध कार्य करता है. इस संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. विजय कांत पुरोहित बताते हैं कि हिमालय रीजन में जंगलों की तरफ तेजी के साथ अतिक्रमण हुआ है. इसकी वजह पर्यटन है. लोग बड़ी संख्या में बुग्यालों, जंगलों में निर्माण कार्य कर रहे हैं. इस निर्माण से नई पौध नहीं बन पा रही है. ये हिमालय के लिए घातक है. वैज्ञानिकों का मानना है कि नियोजित विकास भी हमें विनाश की तरफ ले जा रहा है. समय आ गया है कि जीडीपी की तरह हिमालय को बचाने के लिए जीईपी (Gross Environment Product) पर ध्यान दिया जाए.
हिमालय पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित: हिमालय में पानी के स्रोत (Water sources in the Himalayas) के लिए सबसे बड़ा कारक चौड़ी पत्ती वाले पेड़ होते हैं, लेकिन उनका पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित हुआ है. इससे इस इलाके में पानी का संकट गहरा सकता है. स्रोत सूख रहे हैं. इसके साथ-साथ हिमालय रीजन में कार्बन उत्सजन (Carbon emissions in the Himalayan region) के कारण गर्मी भी बढ़ रही है. इससे हालात ये बन रहे हैं कि मध्य हिमालय में उगने वाले पेड़ पौधे उच्च हिमालय की तरफ अपने को शिफ्ट कर रहे हैं. जैसे देवदार का बीज स्वयम उड़ कर अपने को स्थापित करता है. उसी से यह तरह तरह का चेंज आ रहा है.
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