नई दिल्ली : कोरोना महामारी के दौर में देश के सभी स्कूलों को बंद रखा गया, लिहाजा छात्रों को घर बैठे या तो ऑनलाइन पढ़ाई करनी पड़ी या स्व-अध्ययन ही उनके पास एक मात्र विकल्प था. ऐसे में प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों से स्कूल द्वारा पूरी फीस की मांग करने के कई मामले सामने आए हैं. राजस्थान से तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि स्कूलों को फीस में 15% की छूट देनी होगी. इसका मतलब है कि कुल फीस में अभिभावकों को 15% की राहत मिली.
देश की राजधानी दिल्ली में भी अभिभावकों से जब प्राइवेट स्कूलों द्वारा पूरी फीस जमा करने के लिए दबाव बनाया जाने लगा, तो कुछ अभिभावक 'जस्टिस फॉर ऑल' संस्था के माध्यम से दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचे. याचिका में मांग की गई कि कोर्ट के सिंगल बेंच द्वारा दिए गए निर्णय, जिसमें स्कूलों को वार्षिक शुल्क और डेवलपमेंट फीस वसूलने की अनुमति दे दी गई थी. उस पर रोक लगा दी जाए, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था.
ईटीवी भारत से बात करतीं शिखा बग्गा शर्मा अब 'जस्टिस फॉर ऑल' संस्था कुछ अभिभावकों के साथ मिल कर सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर चुकी है और इसी हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जाएगी.
ईटीवी भारत ने जस्टिस फॉर ऑल संस्था की संस्थापक शिखा बग्गा शर्मा से विशेष बातचीत की. उन्होंने बताया कि दिल्ली हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने भले ही स्टे लगाने से इनकार किया, लेकिन इससे पहले कोर्ट के आदेश में स्पष्ट कहा गया था कि कुल वार्षिक फीस में सत्र 2020-21 के लिए 15% की छूट स्कूलों को देनी है.
इस निर्णय को सत्र 2021-22 तक के लिए भी आगे बढ़ाया था, लेकिन ऐसा देखा जा रहा है कि अब प्राइवेट स्कूल इस निर्णय को अपने पक्ष में बता कर एक बार फिर अभिभावकों पर मनमानी फीस जमा करने का दबाव बना रहे हैं. अभिभावकों को उनके अधिकार और न्यायालय के निर्णय के प्रति जागरूक होने की आवश्यकता है.
सत्र 2020-21 और 2021-22 के लिए प्राइवेट स्कूलों को फीस बढ़ाने की अनुमति नहीं है. कोई भी स्कूल अभिभावकों को ट्रांसपोर्ट या मील चार्ज जमा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता. ऐसा करना अवैध है. स्कूल के द्वारा लिए जा रही वार्षिक फीस में 15% की छूट का मलतब कुल फीस में 15% की कमी है, जबकि कुछ स्कूल केवल वार्षिक शुल्क में 15% छूट देने की बात कर रहे हैं जो गलत है.
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शिखा बग्गा ने आगे बताया कि कोई भी प्राइवेट स्कूल अभिभावकों पर तत्काल फीस न जमा करवा पाने की स्थिति में उनके बच्चे को ऑनलाइन क्लास से रोक नहीं सकता न ही परीक्षा का परिणाम ही रोका जा सकता है. यदि आर्थिक परेशानियों के कारण अभिभावक तत्काल फीस नहीं जमा करवा पा रहे हैं, तो उनके छात्र का नाम स्कूल से काटा नहीं जा सकता. यदि कोई भी स्कूल ऐसा कर रहा है, तो अभिभावकों को इसके खिलाफ शिकायत करनी चाहिए.
कोरोना महामारी से उत्पन्न समस्याओं का असर शिक्षा पर व्यापक रूप से पड़ा ही है. साथ ही लोगों की आमदनी पर भी इसका प्रभाव देखा जा रहा है. ऐसे में जब लोग आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे हैं तब प्राइवेट स्कूलों को वाजिब फीस ही अभिभावकों से वसूलनी चाहिए, लेकिन ज्यादातर स्कूलों द्वारा न केवल पहले की तरह ही पूरी फीस जमा कराने की बात कही जा रही है, बल्कि ऐसे भी प्राइवेट स्कूल हैं जो फीस बढ़ाने की बात कर रहे हैं. इसके खिलाफ न केवल 'जस्टिस फॉर ऑल' जैसे गैर सरकारी संगठन बल्कि अभिभावकों को भी बड़ी संख्या में सामने आने की जरूरत है.