नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने कोविड-19 के कारण जान गंवाने वाले लोगों के परिवार के सदस्यों को मिलने वाली 50000 रुपये की अनुग्रह राशि पाने के लिए झूठे दावों पर चिंता जताई (raised concerns over false claims) है. साथ ही उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह मामले की जांच महालेखाकार कार्यालय को सौंप सकता है.
न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न की पीठ ने कहा कि हमने कभी उम्मीद नहीं की थी और कभी सोचा नहीं था कि इसका भी दुरुपयोग किया जा सकता है. यह शुचिता का काम है और हमने सोचा था कि हमारी नैतिकता इतनी नीचे नहीं गिरी है कि इसमें कुछ झूठे दावे भी होंगे. हमने यह कभी सोचा नहीं था. पीठ ने मुआवजा देने के लिए दिए जा रहे कोविड-19 से मौत के फर्जी प्रमाणपत्रों पर पिछले सप्ताह चिंता जताई थी और कहा था कि वह इस मुद्दे की जांच का आदेश दे सकता है.
पीठ ने कहा था कि अगर ऐसे फर्जी दावों में अधिकारी शामिल है तो यह बहुत गंभीर बात है. उच्चतम न्यायालय ने पहले सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (एसएलएसए) के सदस्य सचिव के साथ समन्वय करने के लिए एक समर्पित नोडल अधिकारी नियुक्त करें ताकि कोविड-19 पीड़ितों के परिवार के सदस्यों को मुआवजे का भुगतान किया जा सके.