नई दिल्ली : तमिलनाडु और महाराष्ट्र सरकार के कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं की एक समूह पर सुप्रीम कोर्ट आज अपना फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने कहा कि जब विधायिका ने घोषणा की है कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु राज्य की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, तो न्यायपालिका अलग दृष्टिकोण नहीं रख सकती है. यह तय करने के लिए विधायिका सबसे उपयुक्त है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारी राय में तमिलनाडु संशोधन अधिनियम अनुच्छेद 51A (g) और (j) के विपरीत नहीं है और संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 का उल्लंघन नहीं करता है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यह तय करना कोर्ट का काम नहीं है कि क्या जल्लीकट्टू तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है.
पांच न्यायाधीशों की बेंच ने कहा कि हम 2014 के फैसले से असहमत हैं कि जल्लीकेट्टू सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा नहीं है. बता दें कि इन याचिकाओं में तमिलनाडु और महाराष्ट्र सरकार के द्वारा 'जल्लीकट्टू' और बैलगाड़ी दौड़ को अनुमति देने के लिए बनाये गये कानून को चुनौती दी गई थी. जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, ऋषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार की पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले में अपना फैसला सुनाया.
तमिलनाडु सरकार ने 'जल्लीकट्टू' के आयोजन का बचाव किया है. राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि खेल का आयोजन एक सांस्कृतिक कार्यक्रम है. सरकार ने कहा कि 'जल्लीकट्टू' के आयोजन में सांडों पर कोई क्रूरता नहीं होती. राज्य ने सु्प्रीम कोर्ट से कहा कि यह एक गलत धारणा है कि 'जल्लीकट्टू' का कोई सांस्कृतिक मूल्य नहीं है क्योंकि यह एक खेल है और इससे लोगों का मनोरंजन होता है. राज्य सरकार ने इस मामले में अपना पक्ष रखते हुए पेरू, कोलंबिया और स्पेन जैसे देशों का उदाहरण दिया.