नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (The Supreme Court) ने गुरुवार को केरल सरकार (kerela government) के मुल्लापेरियार बांध (Mullaperiyar dam) की देखरेख करने वाली पर्यवेक्षी समिति के अध्यक्ष और संरचना को बदलने के अनुरोध को ठुकरा दिया. कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से मौजूदा गठित समिति 2014 से इस पर काम कर रही है. यह अधिक कुशल होगी. कोर्ट ने कहा कि अब प्रयोग नहीं किए जा सकते. नई समिति का अर्थ होगा नई धारणा और अधिक समय लगना. कोर्ट ने कहा कि यदि कोई नया व्यक्ति आता है, तो यह मुश्किल होगा और निर्णय में अधिक समय लगेगा. कोर्ट ने कहा कि नई समिति को स्थिति समझने में समय लगेगा. कृपया समझें, कि पिछले अनुभव के अभाव में नई समिति के पास व्यापक दृष्टिकोण नहीं होगा. अगर समिति को अस्थिर किया जाता है तो यह प्रतिकूल होगा. अदालत ने कहा कि वर्तमान व्यवस्था इतनी अच्छी तरह से काम कर रही है. आप इसे अपनी धारणाओं के आधार पर बाधित करना चाहते हैं.
न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ मुल्लापेरियार बांध के रखरखाव को लेकर केरल और तमिलनाडु राज्यों के बीच विवाद के मामले की सुनवाई कर रही थी. केरल का कहना है कि बांध सुरक्षित नहीं है. इसलिए इसे खत्म कर दिया जाना चाहिए. तमिलनाडु का कहना है कि सुरक्षा के लिहाज से बांध के साथ कोई समस्या नहीं है. अगर केरल में कोई रूकावट नहीं है तो सभी रखरखाव गतिविधियों (maintainance of Mullaperiyar dam) को अंजाम दिया जा सकता है.
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कोर्ट ने राज्यों से कहा था कि आपस में मिलकर चर्चा करें. सौहार्दपूर्ण तरीके से समाधान (find a solution amicably) निकालें. नहीं तो समस्या हमेशा बनी रहेगी. कोर्ट ने सुझाव दिया था कि पर्यवेक्षी समिति बांध सुरक्षा अधिनियम, 2021 के तहत सभी शक्तियों से लैस है. यह सभी कार्यों को पूरा कर सकती है. इसकी सुरक्षा के उपायों का सुझाव दे सकती है. किसी भी प्रकार की समस्या होने पर समिति न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकती है. केरल सरकार ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया था कि 126 साल पुराने मुल्लापेरियार बांध की सुरक्षा की नई समीक्षा विशेषज्ञों की एक स्वतंत्र समिति द्वारा की जानी चाहिए. और केन्द्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) को अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों को इसमें शामिल करने पर विचार करना चाहिए. केरल सरकार ने न्यायालय में एक हलफनामा दाखिल कर कहा था कि बांध की समग्र सुरक्षा समीक्षा प्रक्रिया जनवरी 2018 के बांध सुरक्षा निरीक्षण दिशानिर्देश के अनुरूप की जानी चाहिए. हलफनामे के अनुसार सरकार का आग्रह था कि समग्र बांध सुरक्षा मूल्यांकन यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि ढांचा ठीक है हर प्रकार से सुरक्षित है.
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हलफनामे में सुझाव दिया गया था कि विशेषज्ञों के स्वतंत्र पैनल द्वारा मुल्लापेरियार की सुरक्षा की नई समीक्षा की जानी चाहिए, जिसमें डिजाइन, भूविज्ञान, जल विज्ञान, हाइड्रो-मैकेनिकल बांध सुरक्षा, निर्माण और पर्यवेक्षण आदि दक्ष लोग शामिल हों. सीडल्ब्यूसी को इसमें अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों को शामिल करने पर विचार करना चाहिए. गौरतलब है कि इससे पहले तमिलनाडु सरकार ने पिछले महीने शीर्ष अदालत से कहा था कि अदालत ने जो मजबूती के उपाय के निर्देश दिए थे उन्हें लागू किए बिना बांध की सुरक्षा की नई समीक्षा 'न्यायोचित' नहीं होगी. इधर केंद्र सरकार ने कहा कि केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष के लिए यह संभव नहीं होगा. क्योंकि वह पहले से ही 21 समितियों का नेतृत्व कर रहे हैं और पर्याप्त समय नहीं दे पाएंगे. सुनवाई के दौरान तमिलनाडु के वकील ने यह भी तर्क दिया कि सभी केरल तमिलनाडु को मामले बाहर निकालना चाहता है, जिस पर केरल के वकील ने आपत्ति जताई और कहा कि स्वतंत्र भारत में यह सुनना बेतुका है. यह उपनिवेश का समय नहीं है. दोनों राज्यों ने दोनों राज्यों के विशेषज्ञों को शामिल करने का भी सुझाव दिया था, जिस पर कोर्ट ने सहमति जताई. इस मामले में आदेश शुक्रवार को सुनाया जाएगा.
पीठ ने गुरुवार को कहा कि आज, मौजूदा बांध की सुरक्षा पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है, इसके लिए कानून के तहत एक प्राधिकरण है लेकिन यह स्थापित नहीं है. केरल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने कहा कि सैद्धांतिक रूप से उन्हें न्यायालय के इस सुझाव से कोई कठिनाई नहीं है कि निगरानी समिति एक समय-सीमा के तहत राष्ट्रीय प्राधिकरण का कार्य कर सकती है. उन्होंने कहा कि राज्य ने कुछ प्रस्ताव तैयार किए हैं. केरल के वकील ने कहा कि राज्य का सुझाव है कि निगरानी समिति के अध्यक्ष को बदला जाना चाहिए और इस पद पर किसी वरिष्ठ अधिकारी को नियुक्त किया जाना चाहिए.
तमिलनाडु की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफड़े ने कहा कि उन्हें उन उपायों को लागू करने से रोका जा रहा है जिनके लिए सर्वोच्च अदालत ने 2006 और 2014 के अपने फैसलों में अनुमति दी थी. पीठ ने कहा कि निगरानी समिति को मजबूत बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए. जब नफड़े ने केरल के 'अवरोधक रवैये' के बारे में दलील दी तो गुप्ता ने कहा कि अगर तमिलनाडु इस पर बहस करना चाहता है तो उन्हें पूरे मामले को रखना होगा. इस पर पीठ ने कहा कि कानून के बाद अब बहस करने के लिए क्या है? हम इन आरोपों और प्रति-आरोपों पर गौर नहीं कर रहे हैं.