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उच्चतम न्यायालय 1991 के कानून के खिलाफ जनहित याचिका पर सुनवाई करेगा

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 1991 के एक कानून के कुछ प्रावधानों पर नौ सितंबर को सुनवाई के लिए तैयार हो गया है. इस बारे में प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना (Chief Justice N V Ramana), न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी (Justices Krishna Murari) और न्यायमूर्ति हिमा कोहली (Justices Hima Kohli) की पीठ ने संज्ञान लिया.

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Published : Aug 5, 2022, 7:45 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) शुक्रवार को 1991 के एक कानून के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर नौ सितंबर को सुनवाई करने के लिए सहमत हो गया. इस कानून में किसी पूजा स्थल की 15 अगस्त, 1947 की स्थिति में बदलाव या किसी पूजा स्थल को पुन: प्राप्त करने के लिए मुकदमा दर्ज कराने पर रोक है. प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना (Chief Justice N V Ramana) की अध्यक्षता वाली पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी (senior advocate Rakesh Dwivedi) की उन दलीलों पर संज्ञान लिया जिनमें कहा गया है कि उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के कुछ प्रावधानों के खिलाफ याचिका को कॉज लिस्ट (मुकदमे की सूची) से छह बार हटाया गया है.

वरिष्ठ अधिवक्ता ने न्यायमूर्ति रमना, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी (Justices Krishna Murari) और न्यायमूर्ति हिमा कोहली (Justices Hima Kohli) की पीठ को बताया, 'अब इसे नौ सितंबर को सूचीबद्ध किए जाने की संभावना है. कृपया निर्देश दें कि इसे सूची से हटाया नहीं जाए.' उच्चतम न्यायालय ने वकील एवं भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा इस मुद्दे पर दाखिल एक जनहित याचिका पर पिछले वर्ष 12 मार्च को केंद्र सरकार से जवाब मांगा था.

इस वर्ष 29 जुलाई को न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ (Justice D Y Chandrachud) की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाले छह याचिकाकर्ताओं को एक लंबित मामले में हस्तक्षेप याचिका दाखिल करने को कहा था. उपाध्याय ने अपनी याचिका में आरोप लगाया गया है कि 1991 के कानून में 'कट्टरपंथी-बर्बर हमलावरों और कानून तोड़ने वालों' द्वारा किए गए अतिक्रमण के खिलाफ पूजा स्थलों या तीर्थस्थलों के चरित्र को बनाए रखने के लिए 15 अगस्त, 1947 की समयसीमा 'मनमानी और तर्कहीन' है.

इस याचिका में 1991 अधिनियम की धारा 2, 3, 4 को रद्द करने का अनुरोध किया गया है. इसके लिए आधार भी दिया गया है कि ये प्रावधान किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल को पुनः प्राप्त करने के न्यायिक सुधार का अधिकार छीन लेते हैं. कानून में केवल एक अपवाद बनाया गया है जो अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद से संबंधित विवाद से संबंधित है. नयी दलीलें महत्वपूर्ण हैं क्योंकि मथुरा और काशी में धार्मिक स्थलों को फिर से प्राप्त करने के लिए कुछ हिंदू समूहों द्वारा ऐसी मांग की जा रही है। लेकिन 1991 के कानून के तहत इस पर रोक है.

याचिका में दावा किया गया है कि ये प्रावधान न केवल समानता और जीवन के अधिकार का उल्लंघन करते हैं, बल्कि धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का भी उल्लंघन करते हैं, जो संविधान की प्रस्तावना और मूल संरचना का एक अभिन्न अंग है. याचिका में दावा किया गया है कि कानून के प्रावधान न केवल अनुच्छेद 14 (समानता), अनुच्छेद 15 (धर्म, जाति, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भारतीयों के भेदभाव पर रोक), अनुच्छेद 21 (जीवन की सुरक्षा और निजी स्वतंत्रता), अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा) आदि का उल्लंघन करते हैं बल्कि धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का भी उल्लंघन करते हैं जो संविधान की प्रस्तावना और मूल संरचना का अभिन्न अंग है.

याचिका में दावा किया गया है कि केंद्र ने हिंदुओं, जैन, बौद्ध और सिखों के पूजा स्थलों पर अवैध अतिक्रमण के खिलाफ सुधार को रोक दिया है और वे इस संबंध में कोई मुकदमा दायर नहीं कर सकते और न ही किसी उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं.

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(पीटीआई-भाषा)

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