नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने सोमवार को कहा कि वह संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 31 अक्टूबर को सुनवाई करेगा. इस कानून में 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत आ चुके पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में प्रताड़ना के शिकार गैर मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने का प्रावधान है. प्रधान न्यायाधीश यू यू ललित और न्यायमूर्ति एस आर भट की पीठ ने कहा कि मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाएगा.
पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदायों के लोगों को भारत की नागरिकता देने के प्रावधान वाले संशोधित कानून से मुस्लिम प्रवासियों को बाहर रखने पर विपक्षी दलों, नेताओं और अन्य लोगों ने तीखी आलोचना की है.
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सोमवार को सुनवाई के दौरान पीठ को बताया कि शीर्ष अदालत के समक्ष दायर याचिकाओं में कई मुद्दे उठाए गए हैं. उन्होंने कहा, 'जहां तक कुछ संशोधनों और चुनौती का संबंध है, हमारा जवाब दाखिल किया गया है. कुछ मामलों में हमारा जवाब अभी दाखिल किया जाना बाकी है.' मेहता ने कहा कि तैयारी के लिए और मामले की सुनवाई के लिए भी कुछ समय की आवश्यकता होगी.
सॉलिसिटर जनरल का कार्यालय मामलों की लिस्ट तैयार करेगा :पीठ ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल का कार्यालय उन मामलों की पूरी सूची तैयार करेगा जिन्हें याचिकाओं में उठाई गई चुनौती के आधार पर विभिन्न खंडों में रखा जाएगा. पीठ ने कहा, 'केंद्र इसके बाद चुनौतियों के इन खंडों के संबंध में अपनी उचित प्रतिक्रिया दर्ज करेगा.' साथ ही पीठ ने कहा, 'इस संबंध में जरूरी काम आज से चार सप्ताह के भीतर किया जाए.'
पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत के 22 जनवरी, 2020 के आदेश पर उसका ध्यान आकर्षित किया जाता है, जिसके संदर्भ में असम और पूर्वोत्तर से आने वाले मामलों को पहले ही अलग करने का निर्देश दिया गया था. पीठ ने कहा, 'इन मामलों को 31 अक्टूबर को निर्देश के लिए अदालत के समक्ष सूचीबद्ध किया जाता है. पीठ ने कहा, 'इस बीच, सभी नए मामलों में नोटिस जारी किए जाएं, जहां अब तक इस अदालत द्वारा नोटिस जारी नहीं किया गया है.'
पीठ ने मौखिक टिप्पणी में कहा, 'कामकाज को व्यवस्थित करें और मान लें कि हम तीन-न्यायाधीशों की पीठ का संदर्भ देंगे.' मामले में पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि ये 'बहुत महत्वपूर्ण मामले हैं जो बहुत लंबे समय से लटके हुए हैं' और इन्हें सुनने और जल्दी से निर्णय लेने की आवश्यकता है. न्यायमूर्ति ललित ने कहा, 'हमने अभी इस मुद्दे पर चर्चा की थी कि क्या हमें इस अदालत के कम से कम तीन न्यायाधीशों का संदर्भ देना चाहिए. मुझे लगा कि इन सभी प्रारंभिक बातों को समाप्त होने दें और फिर हम एक संदर्भ दे सकते हैं.'