नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से सतत विकास और अंतरपीढ़ीगत समानता को ध्यान में रखते हुए इस सवाल पर अपनी राय देने के लिए कहा कि क्या ओडिशा में लौह अयस्क के खनन पर सीमा तय की जा सकती है. शीर्ष न्यायालय ने केंद्रीय खनन मंत्रालय के हलफनामे पर विचार किया और कहा कि उसके पास पर्यावरण मंत्रालय की राय नहीं है. यह हलफनामा उच्चतम न्यायालय के उस सवाल पर दाखिल किया गया था कि क्या ओडिशा में लौह अयस्क के सीमित भंडार को ध्यान में रखते हुए खनन की कोई सीमा तय की जा सकती है.
भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी परदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, 'हम पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की राय जानना चाहते हैं. यह मंत्रालय विशेषज्ञ संस्था है और यह हमें पर्यावरण पर लौह अयस्क खनन के असर और अंतरपीढ़ीगत समानता की अवधारणा के बारे में बता सकता है.' याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) 'कॉमन कॉज' की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि जिस गति से अभी खनन हो रहा है उसे ध्यान में रखते हुए 25 वर्षों में लौह अयस्क खत्म होने की आशंका है और इसलिए इसकी सीमा तय किए जाने की आवश्यकता है.
इससे पहले, उच्चतम न्यायालय ने इस पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था कि क्या ओडिशा में सीमित लौह अयस्क को ध्यान में रखते हुए वहां खनन पर कोई सीमा तय की जा सकती है. पीठ ने ओडिशा सरकार को चार सप्ताह में एक नया हलफनामा दायर कर चूककर्ता (डिफॉल्टर) खनन कंपनियों से बकाया वसूलने की जानकारियां देने को भी कहा है जिन्हें राज्य में नियमों का उल्लंघन करने का दोषी ठहराया गया था.