नई दिल्ली :उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण के लिए महिला आरक्षण विधेयक 2008 को फिर से पेश करने की मांग वाली याचिका पर जवाब मांगा है. जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ यहां शनिवार को एनजीओ नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में कहा गया था कि बिल पेश किए हुए 25 साल हो गए और चूंकि इसे लोकसभा में पारित किया गया था, लेकिन लोकसभा के विघटन के कारण यह अब समाप्त हो चुका है.
महिला आरक्षण विधेयक पर SC ने केंद्र से मांगा जवाब, 6 हफ्ते की दी मोहलत - Centres reply on Womens Reservation Bill
शीर्ष अदालत ने केंद्र को छह हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. साथ ही शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता और नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन को कानून व न्याय मंत्रालय की ओर से दायर हलफनामे का जवाब देने के लिए और तीन सप्ताह का समय दिया.
पीठ ने केंद्र को छह हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. साथ ही शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता और नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन को कानून व न्याय मंत्रालय की ओर से दायर हलफनामे का जवाब देने के लिए और तीन सप्ताह का समय दिया. याचिकाकर्ता की ओर से वकील प्रशांत भूषण पेश हुए, उन्होंने ही याचिका को ड्राफ्ट किया है. इसमें कहा गया है, 'हमारे समाज की पितृसत्तात्मक मानसिकता के चलते महिलाओं के उत्पीड़न और उन्हें समान अधिकार देने से वंचित करने के लिए प्रेरित किया है. इसे तभी बदला जा सकता है जब महिलाएं ऐसे बदलाव लाने वाले आधिकारिक पदों पर हों.' मामले पर अगले साल मार्च में फिर सुनवाई होगी.
बता दें कि मालूम हो कि महिला आरक्षण विधेयक को 2008 में राज्यसभा में पेश किया गया था। यहां से इसे एक स्थायी समिति के पास भेज दिया गया। 2010 में यह विधेयक राज्यसभा में पास हो गया। हालांकि, 15वीं लोकसभा के भंग होने से 2014 में समाप्त हो गया। ध्यान रहे कि महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करता है.