नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की सात न्यायाधीशों की पीठ ने 1998 के फैसले पर पुनर्विचार के संबंध में गुरुवार को अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया, जिसमें कहा गया था कि सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट देने के लिए रिश्वत लेने पर अभियोजन से छूट प्राप्त है. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (Chief Justice D Y Chandrachud ) की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित कई वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया.
वृहद पीठ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) रिश्वत मामले में 1998 में पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनाए गए फैसले पर पुनर्विचार कर रही है, जिसके द्वारा सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट देने के संबंध में रिश्वत के लिए अभियोजन से छूट दी गई थी. देश को झकझोर देने वाले झामुमो रिश्वत कांड के 25 साल बाद शीर्ष अदालत फैसले पर दोबारा विचार कर रही है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले में दलीलें रखते हुए अदालत से संविधान के अनुच्छेद 105 के तहत छूट के पहलू पर नहीं जाने का आग्रह किया. मेहता ने कहा, 'रिश्वतखोरी का अपराध तब होता है जब रिश्वत दी जाए और कानून निर्माताओं (सांसद-विधायक) द्वारा स्वीकार की जाए. इससे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत निपटा जा सकता है.' उन्होंने कहा, 'न तो बहुमत और न ही अल्पमत (1998 का निर्णय) ने इस दृष्टिकोण से मुद्दे पर गौर किया. संक्षिप्त प्रश्न, जिस पर वर्तमान संदर्भ आधारित है, वह यह है कि क्या सदन के बाहर रिश्वतखोरी का अपराध हुआ. यदि ऐसा है, तो इस अदालत को छूट के सवाल पर जाने की जरूरत नहीं है.'