नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक दंपति के विवाद में पितृत्व का निर्धारण करने के लिए दो बच्चों के डीएनए टेस्ट की अनुमति देने वाले तेलंगाना हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया. कोर्ट ने कहा इस तरह के निर्देश किसी व्यक्ति की स्वायत्तता पर हमला है और निजता के अधिकार का भी उल्लंघन है. जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा: ट्रायल कोर्ट और रिवीजन कोर्ट ने निजता के अधिकार को नजरअंदाज कर दिया और ऐसा व्यवहार किया जैसे बच्चे भौतिक वस्तुएं हैं जिन्हें फोरेंसिक विश्लेषण के लिए भेजा जा सकता है.
कोर्ट ने नोट किया कि शिकायत मुख्य रूप से बच्चों के पितृत्व से संबंधित नहीं थी, क्योंकि मां ने दावा किया था कि उसे अपने साले के साथ संभोग करने के लिए मजबूर किया गया. मामला दहेज प्रताड़ना से भी जुड़ा हुआ है. महिला ने अपने पति और उसके भाई के खिलाफ आईपीसी की धारा 498ए, 323 और 354 और अन्य दूसरे प्रावधानों के तहत शिकायत दर्ज कराई थी.
शीर्ष अदालत ने कहा कि निचली अदालत ने महिला के आवेदन को इस आधार पर अनुमति दी कि कानून के तहत डीएनए टेस्ट हो सकता है. इसने कहा कि निचली और हाई कोर्ट दोनों ने इस बात को नजरअंदाज किया कि बच्चों के पितृत्व पर सवाल नहीं उठाया गया था.