नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने किसी मंत्री को न्यायिक हिरासत के दो दिनों बाद एक सरकारी सेवक की ही तरह पद पर रहने देने पर रोक लगाने का अनुरोध करने वाली एक जनहित याचिका (PIL seeking bar on ministers after arrest) को स्वीकार करने से सोमवार को इनकार कर दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि वह ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि 'शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत' पूरी तरह से खत्म हो जाएगा. गौरतलब है कि यह सिद्धांत कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की शक्तियों का पृथक्करण करता है.
इस साल जून में दायर की गई याचिका पर प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई कर रही थी. पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला भी शामिल हैं. याचिका के जरिए, महाराष्ट्र में मंत्री पद पर रहने के दौरान न्यायिक हिरासत में जेल भेजे गये राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता नवाब मलिक को बर्खास्त करने के लिए तत्कालीन उद्धव ठाकरे नीत सरकार को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने राष्ट्रीय राजधानी में आम आदमी पार्टी नीत सरकार में मंत्री सत्येंद्र जैन को भी हटाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. जैन को आपराधिक मामलों के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था और वह अभी न्यायिक हिरासत में हैं.
अदालत ने कहा, 'हम इस तरीके से अयोग्य नहीं घोषित कर सकते और किसी व्यक्ति को पद से नहीं हटा सकते हैं...खास तौर पर (संविधान के) अनुच्छेद 32 के तहत मिले हमें क्षेत्राधिकार में(जिसके तहत एक व्यक्ति सीधे उच्चतम न्यायालय का रुख कर सकता है). हम एक ऐसा प्रावधान लागू नहीं कर सकते जो एक बाध्यकारी कानून बन जाए और किसी को बाहर कर दिया जाए.'