नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तमिलनाडु की राजनीति के पितामह एवं पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि की याद में एक ऑफ-शोर पेन मेमोरियल परियोजना के द्रमुक सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि यदि यह एक राजनीतिक याचिका है, तो शीर्ष अदालत राजनीतिक लड़ाई लड़ने का मंच नहीं है और याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि वह इस लड़ाई को कहीं और लड़ें.
डीएमके सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने तर्क दिया कि अदालत के समक्ष याचिका एक राजनीति से प्रेरित याचिका है, जो मछुआरों की आजीविका की आड़ में लड़ी जा रही है. वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे कुछ मछुआरों का प्रतिनिधित्व करते हुए अदालत में पेश हुए, जिन्होंने बंगाल की खाड़ी के तट से 360 मीटर दूर प्रस्तावित 81 करोड़ रुपये के 42 मीटर ऊंचे पेन स्मारक के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था. याचिका में तर्क दिया गया कि स्मारक से पर्यावरणीय क्षति होगी और आजीविका का नुकसान होगा.
याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए पीठ ने कहा, 'अगर यह पर्यावरण संबंधी चिंताओं के बारे में है, तो एनजीटी (राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण) इस पर सुनवाई क्यों नहीं कर सकती? हर बात सीधे सुप्रीम कोर्ट में क्यों आनी चाहिए?' दवे ने तर्क दिया कि मछुआरों द्वारा आजीविका के अपने मौलिक अधिकार को लागू करने के लिए जनहित याचिका दायर की गई है, और इसे सीधे शीर्ष अदालत के समक्ष रखा जा सकता है.