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SC ने ममता बनर्जी, मलय घटक के हलफनामे अस्वीकार करने का उच्च न्यायालय का आदेश निरस्त किया

नारदा मामले को स्थानांतरित करने की सीबीआई की अर्जी पर दाखिल किए गए पश्चिम बंगाल राज्य, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कानून मंत्री मलय घटक के जवाबी हलफनामे स्वीकार नहीं करने का आदेश कलकत्ता उच्च न्यायालय ने दिया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को रद्द कर दिया.

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Published : Jun 25, 2021, 5:10 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने नारदा मामले को स्थानांतरित करने की सीबीआई की अर्जी पर दाखिल किए गए पश्चिम बंगाल राज्य, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कानून मंत्री मलय घटक के जवाबी हलफनामे स्वीकार नहीं करने का कलकत्ता उच्च न्यायालय आदेश शुक्रवार को रद्द कर दिया.

न्यायमूर्ति विनीत शरण और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की अवकाशकालीन पीठ ने उच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ से सीबीआई की मुख्य याचिका पर फैसला करने से पहले पश्चिम बंगाल राज्य, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कानून मंत्री मलय घटक के आवेदनों पर 28 जून को या उससे पहले नए सिरे से विचार करने का आग्रह किया.

शीर्ष अदालत तीन अपीलों पर सुनवाई कर रही थी जिसमें नारद स्टिंग से जुड़े मामले में सीबीआई द्वारा 17 मई को तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं की गिरफ्तारी के दिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कानून मंत्री मलय घटक की भूमिका पर उन्हें हलफनामे दाखिल करने की अनुमति देने से कलकत्ता उच्च न्यायालय के इनकार के खिलाफ राज्य सरकार की अपील भी शामिल है. उच्च न्यायालय में 29 जून को मामले की सुनवाई होने के तथ्यों का संज्ञान लेते हुए पीठ ने बनर्जी और अन्य को सीबीआई और बाकी जरूरी पक्षों को अग्रिम प्रतियां भेजने के बाद अपना जवाब रिकॉर्ड पर रखने का निर्देश दिया.

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और अन्य पक्ष अगर चाहें तो वे 28 जून को अग्रिम प्रतियां मिलने के बाद 29 जून को (मुख्यमंत्री, कानून मंत्री और राज्य की) अर्जियों पर अपना जवाबी हलफनामा दे सकते हैं.

पीठ ने कहा, हम उच्च न्यायालय से मामले के गुण-दोष पर विचार करने से पहले याचिकाकर्ताओं की अर्जियों पर सुनवाई का आग्रह करते हैं. आगे हम यह भी जोड़ना चाहेंगे कि चूंकि पक्षों के प्रति पूर्वाग्रह पैदा हो सकता है, इसलिए 9 जून का आदेश रद्द किया जाता है.

सीबीआई ने आरोप लगाया है कि राज्य के सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने मामले में चारों नेताओं की गिरफ्तारी के बाद उसे अपना वैधानिक कर्तव्य निभाने में अड़चन डालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. सीबीआई ने आरोप लगाया कि बनर्जी चारों आरोपियों की गिरफ्तारी के ठीक बाद कोलकाता में सीबीआई कार्यालय में धरना पर बैठ गयीं, वहीं घटक अदालत परिसर में मौजूद थे जहां 17 मई को सीबीआई की विशेष अदालत के समक्ष डिजिटल माध्यम से सुनवाई हो रही थी.

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उच्च न्यायालय ने नौ जून को राज्य, मुख्यमंत्री और कानून मंत्री के उनकी भूमिका पर जवाबी हलफनामे स्वीकार करने से मना करते हुए कहा कि वह बाद में इस पहलू पर विचार करेगा. उच्च न्यायालय के 2017 के आदेश पर नारद स्टिंग टेप मामले की छानबीन कर रही सीबीआई ने मंत्री सुब्रत मुखर्जी और फरहाद हकीम, तृणमूल कांग्रेस के विधायक मदन मित्रा और कोलकाता के पूर्व महापौर शोभन चटर्जी को गिरफ्तार किया था.

शीर्ष अदालत में शुक्रवार को कार्यवाही शुरू होने पर अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि वह वकीलों को अपनी-अपनी दलीलें रखने के लिए पांच-पांच मिनट देगी. बनर्जी और घटक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि सीबीआई की अर्जी पर उचित सुनवाई के लिए उनके जवाब को रिकॉर्ड पर लेना जरूरी है. राज्य की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि उच्च न्यायालय के नियमों के मुताबिक हलफनामा दाखिल करने की अनुमति देना आवश्यक नहीं है और राज्य ने शिष्ठाचारवश यह अनुरोध किया था जिसे अस्वीकार कर दिया गया.

सीबीआई की तरह से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब को रिकॉर्ड पर रखे जाने का विरोध किया. उन्होंने कहा कि जांच ब्यूरो ने इस मामले की सुनवाई स्थानांतरित करने और चार आरोपियों का जमानत देने के आदेश विभिन्न आधारों पर निरस्त करने के लिये आवेदन दयर कर रखा है.

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विशेष सीबीआई अदालत ने 17 मई को ही आरोपियों को जमानत दे दी थी लेकिन इस आदेश पर उच्च न्यायालय ने रोक लगाते हुये सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया था.

उच्च न्यायालय ने बाद में जमानत पर रोक लगाने के आदेश में संशोधन करते हुये सभी आरोपियों को 21 मई को घर में नजरबंद रखने का आदेश दिया था.

इसके बाद उच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश बिन्दल की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 28 मई को नारदा घोटाले के चार आरोपियों को 28 मई को अंतरिम जमानत प्रदान की थी.

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