नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को महिला आरक्षण विधेयक, 2008 को फिर से पेश करने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई की. इस मामले में केंद्र से जवाब मांगते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह यह जानने को उत्सुक है कि राजनीतिक दल क्या कहेंगे. कोर्ट ने मंगलवार को इस बात पर जोर दिया कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) को छोड़कर उनमें से कोई भी आगे नहीं आया है. यह विधेयक लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने पर विचार करता है.
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज से कहा कि आपने जवाब दाखिल नहीं किया है. आप शरमा क्यों रहे हैं. केंद्र के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता इस विधेयक को पेश करने के लिए आदेश की मांग कर रहा है. न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि वह अलग है. कोर्ट ने कहा कि आप कहें कि आप इसे लागू करना चाहते हैं. आप जवाब क्यों नहीं दाखिल करते? यह बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है. यह हम सभी से संबंधित है.
न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि हम पर कुछ प्रतिबंध हैं, हम उनसे आगे नहीं बढ़ सकते हैं. जस्टिस खन्ना ने नटराज से कहा कि आपको जवाब दाखिल करना चाहिए था. मुझे यह जानने में दिलचस्पी थी कि राजनीतिक दल क्या कहेंगे. सीपीआई (एम) को छोड़कर उनमें से कोई भी आगे नहीं आया है. नटराज ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि यही प्रतिबंध हम पर भी लागू होता है. संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद, शीर्ष अदालत ने मामले को अक्टूबर 2023 में आगे की सुनवाई के लिए निर्धारित किया.
वकील प्रशांत भूषण ने याचिकाकर्ता नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन (एनएफआईडब्ल्यू) का प्रतिनिधित्व किया. पिछले साल नवंबर में, शीर्ष अदालत ने आठ साल पहले संसद में खत्म हो चुके 'महिला आरक्षण विधेयक' को पुनर्जीवित करने की मांग वाली जनहित याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था. शीर्ष अदालत ने तब केंद्र को छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था. याचिकाकर्ता को कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा दायर किए जाने वाले हलफनामे का जवाब देने के लिए तीन अतिरिक्त सप्ताह का समय दिया था.
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