नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से माफी मांगने वाले कैदियों द्वारा दायर आवेदनों पर निर्णय लेने में लगने वाले समय के बारे में बताने को कहा है. साथ ही यह भी कि संवैधानिक अदालतों, उच्च न्यायालय और शीर्ष न्यायालय में कितनी याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें छूट देने की प्रार्थना पर विचार न किए जाने की शिकायतें हैं. शीर्ष अदालत ने विशेष रूप से गुजरात सरकार से पूछा कि क्या छूट का अनुदान सशर्त हो सकता है, जिसे रद्द किया जा सकता है?
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ का यह आदेश मफाभाई मोतीभाई सागर द्वारा दायर याचिका पर आया, जिन्हें अप्रैल 2006 में हुई हत्या के एक मामले में 2008 में ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया था. शीर्ष अदालत के समक्ष सागर का प्रतिनिधित्व वकील रऊफ रहीम और अली असगर रहीम ने किया. उनके वकील ने कहा कि उन्होंने 14 साल की सजा काटी है और 1992 की पुरानी राज्य नीति के तहत छूट के हकदार हैं.
सितंबर 2022 में, 9 सदस्यीय सलाहकार समिति ने एक बैठक में सर्वसम्मति से याचिकाकर्ता को छूट देने का निर्णय लिया, हालांकि समिति के निर्णय पर राज्य सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई. सागर ने इस साल फरवरी में पैरोल की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया, क्योंकि उसकी सजा में छूट या समय से पहले रिहाई पर कोई निर्णय नहीं लिया गया था.