नई दिल्ली :कोरोना महामारी के दौरान निराश्रित और अनाथ हुए बच्चों की पहचान करने का पहला चरण भी पूरा नहीं हुआ है. सड़कों पर रहने वाले और माता-पिता को खोने वाले बच्चों की पहचान न कर पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों की देखभाल के लिए निर्देश पारित हुए 4 महीने हो गए हैं. लेकिन राज्यों ने अभी तक बच्चों की पहचान तक नहीं की है.
दरअसल, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति सूर्यकांत (Justice L Nageswara Rao and Justice Surya Kant) की पीठ ने स्वत: संज्ञान लिया है. पीठ ने ऐसे बच्चों की दशा पर संज्ञान लिया है जिन्हें सुरक्षा और देखभाल की जरूरत है. अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकारियों से जरूरतमंद बच्चों के पुनर्वास के लिए तत्काल कदम उठाने और स्टेटस रिपोर्ट जमा करने को कहा था.
अनाथ बच्चों की स्थिति के संबंध में असम ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि राज्य सरकार को एनसीपीसीआर की ओर से कोई मेल नहीं मिला है. असम सरकार ने कहा कि उसे अपनी मेल आईडी अपडेट करनी होगी जिससे एनसीपीसीआर की ओर से उसे जानकारी मिल सके. महाराष्ट्र और दिल्ली सरकार के लचर रवैये को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इनकी भी खिंचाई की. इन राज्यों पर बच्चों की वास्तविक संख्या छिपाने का आरोप है. महाराष्ट्र ने 3257 बच्चों की पहचान की और दिल्ली ने 428 की पहचान की. कोर्ट ने दिल्ली सरकार को लताड़ा और पूछा, किसी संगठन ने 70,000 बच्चों की पहचान की है और सरकार केवल 428 बच्चों की पहचान कर सकी है ?
जस्टिस नागेश्वर राव ने दोनों राज्यों की खिंचाई करते हुए कहा, 'कोविड-19 की जैसी स्थिति का हम सामना कर रहे हैं, वह बच्चों के लिए और भी विकट है. हमारे आसपास ऐसे बच्चे हैं, जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं.' जस्टिस राव ने कहा, ठंड में यह स्थिति और खराब होगी, जरा सोचिए बच्चे कितना कष्ट भोग रहे हैं. राज्य सरकारों को आइना दिखाते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, यह आपका कर्तव्य है. हमें आपको यह बताने की जरूरत नहीं होनी चाहिए.
यूपी सरकार ने अदालत को सूचित किया कि एनजीओ ने 30,082 बच्चों की पहचान की है. इनका पता लगाने की कोशिश की जा रही है. एनजीओ की ओर से सरकार को बच्चों का पता नहीं दिया गया. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि बच्चों के बारे में पता लगाने के लिए कई टीमें और एजेंसियां भेजी गई हैं. इस पर कोर्ट ने सुझाव दिया कि इस काम में ट्रैफिक पुलिस की मदद भी ली जा सकती है, क्योंकि ज्यादातर बच्चे ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांगते हैं.
मध्य प्रदेश सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि सरकार ने 704 बच्चों की पहचान की है. अधिकारियों के लचर रवैये के लिए अदालत को सख्ती दिखाने का सुझाव भी दिया गया. मध्य प्रदेश सरकार ने कहा कि अधिकारियों को कुशलता से काम नहीं करने के लिए दंडित किया जाए. इस पर अदालत ने कहा कि वह विभागों से अवमानना की धमकी के तहत काम करने की उम्मीद नहीं करती. अदालत इस स्तर पर अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं करेगी.
हालांकि, मध्य प्रदेश के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 का हवाला भी दिया. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि बच्चों के बारे में जानकारी नहीं देना एक अपराध है और दोषी को जेल भेजे जाने का प्रावधान है.