नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को विधेयकों के निपटारे में तमिलनाडु के राज्यपाल की ओर से देरी पर सवाल उठाया. शीर्ष अदालत ने कहा कि जनवरी 2020 से लंबित विधेयकों पर अब मंजूरी लग रही है. राज्यपाल तीन साल से क्या कर रहे थे? प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने अटॉर्नी जनरल (एजी) आर वेंकटरमणी से पूछा कि अदालत ने 10 नवंबर को आदेश पारित किया था, और ये बिल जनवरी 2020 से लंबित हैं. इसका मतलब है कि राज्यपाल ने अदालत द्वारा नोटिस जारी किये जाने के बाद ही विधेयकों पर फैसला लिया है. सीजेआई ने यह भी पूछा, "राज्यपाल को राजनीतिक पार्टियों के सुप्रीम कोर्ट जाने तक का इंतजार क्यों करना पड़ रहा है?" तमिलनाडु सरकार की उस याचिका पर सुनवाई एक दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी है.
इस याचिका में राज्य के राज्यपाल आर एन रवि पर विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी करने का आरोप लगाया गया है. अदालत ने इस तथ्य पर गौर किया कि तमिलनाडु विधानसभा ने राज्यपाल द्वारा लौटाए गए 10 विधेयकों को फिर से पारित किया है. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने राज्यपाल कार्यालय की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल (एजी) आर वेंकटरमणी की ओर से सुनवाई टालने के आग्रह को मान लिया. पीठ ने कहा, "पहले हम विधेयकों (पुन: पारित) पर राज्यपाल के निर्णय का इंतजार करते हैं." विधेयकों को मंजूरी देने में देरी पर गौर करते हुए पीठ ने कहा कि मुद्दा यह है कि क्या राज्यपाल के कार्यालय को सौंपे गए संवैधानिक कार्यों के निर्वहन में देरी हुई है.