नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अशोक भूषण (Supreme Court judge Justice Ashok Bhushan) चार जुलाई को सेवानिवृत्त होंगे. न्यायमूर्ति भूषण ऐतिहासिक अयोध्या भूमि विवाद मामले (historic Ayodhya land dispute case) से लेकर बायोमेट्रिक आईडी आधार (biometric ID Aadhaar0 की वैधता को बरकरार रखने समेत कई महत्वपूर्ण फैसलों का हिस्सा रहे हैं. वह उस फैसले का भी हिस्सा रहे थे, जिसमें कहा गया था कि भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) 'मास्टर ऑफ रोस्टर' होता है और उनके पास मामलों को आवंटित करने का विशेषाधिकार और प्राधिकार होता है.
शीर्ष अदालत के छठे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण के सेवानिवृत्त होने से वहां न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या (सीजेआई सहित) 34 के मुकाबले कम होकर 26 रह जायेगी. न्यायमूर्ति भूषण पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने नवंबर 2019 में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ कर दिया था और केंद्र को मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ का भूखंड आवंटित करने का निर्देश दिया था.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में 13 मई 2016 को पदोन्नत, न्यायमूर्ति भूषण पांच-न्यायाधीशों की उस पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने सितंबर 2018 में केंद्र की प्रमुख आधार योजना को संवैधानिक रूप से वैध घोषित किया था, लेकिन इसके कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया था जिसमें बैंक खातों, मोबाइल फोन और स्कूल में दाखिले के साथ इसे जोड़ना शामिल था.
न्यायमूर्ति भूषण जुलाई 2018 के उस फैसले का हिस्सा थे जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि दिल्ली को एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है, लेकिन साथ ही कहा था कि उपराज्यपाल को दिल्ली की निर्वाचित सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा.