नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कांग्रेस नेता की उस याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 की धारा 50 और धारा 63 को संविधान के दायरे से बाहर घोषित करने की मांग की गई है. धारा 50 प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को किसी आरोपी को बुलाने और बयान दर्ज करने की शक्ति देती है, जो कानून की अदालत में स्वीकार्य साक्ष्य है.
मध्य प्रदेश में एक कांग्रेस विधायक, याचिकाकर्ता गोविंद सिंह का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि याचिका पीएमएलए की धारा 50 और 63 को चुनौती देती है और मामला एक ईसीआईआर से संबंधित है, जिसमें व्यक्ति को यह भी पता नहीं चलेगा कि उसे किस हैसियत से बुलाया गया है. याचिका में सिंह को जारी किए गए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के समन को भी चुनौती दी गई है.
जस्टिस संजय किशन कौल, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और अरविंद कुमार की पीठ ने याचिका पर भारत संघ और ईडी को नोटिस जारी किया और छह सप्ताह के बाद आगे की सुनवाई के लिए निर्धारित किया. अधिवक्ता सुमीर सोढ़ी के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है : "मुख्य रूप से चुनौती इस पर आधारित है कि पीएमएलए के प्रावधान प्रवर्तन निदेशालय के एक अधिकारी को अधिनियम की धारा 50 के तहत किसी भी व्यक्ति को अपना बयान दर्ज करने के लिए बुलाने की अनुमति देते हैं. उस व्यक्ति का इस तरह के बयानों में सच न बोलना संविधान के अनुच्छेद 20(3) और 21 का उल्लंघन है."
दलील में कहा गया है कि याचिकाकर्ता शीर्ष अदालत के हालिया फैसले से अवगत है, जिसमें विजय मदनलाल चौधरी और अन्य के मामले में पीएमएलए की धारा 50 की चुनौती को खारिज कर दिया गया है.
याचिका में कहा गया है, "हालांकि, याचिकाकर्ता के पास इस देश का एक सूचित नागरिक होने के नाते यह आग्रह करने के लिए कुछ आधार हैं कि विजय मदनलाल (सुप्रा) के मामले में लिए गए निर्णय के आधार पर इस याचिका में उठाया गया मुद्दा संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के संदर्भ में बड़ी संवैधानिक पीठ द्वारा विचार किए जाने के लायक है." याचिका में तर्क दिया गया कि धारा 50 संविधान के अनुच्छेद 20 (3) के तहत निहित आत्म-दोष को नजरअंदाज करना मौलिक अधिकार का सीधा का हनन है.