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SC ने महुआ की याचिका पर लोकसभा महासचिव से मांगा जवाब - कैश फॉर क्वेरी मामला

SC Mahua Moitra: सुप्रीम कोर्ट ने कैश-फॉर-क्वेरी मामले लोकसभा महासचिव से दो सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है. वहीं, अदालत ने टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा को लोकसभा की कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति देने से इनकार कर दिया.

SC issues notice on a plea by Mahua Moitra challenging her expulsion from Lok Sabha
SC ने महुआ की याचिका पर लोकसभा महासचिव से मांगा जवाब

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 3, 2024, 2:28 PM IST

नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने कैश-फॉर-क्वेरी मामले टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा की याचिका पर लोकसभा महासचिव से दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है. महुआ मोइत्रा ने मामले में लोकसभा से उनके निष्कासन को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.

सुप्रीम कोर्ट ने कथित कदाचार और लॉग-इन जानकारी साझा करने को लेकर लोकसभा से निष्कासन को चुनौती देने वाली टीएमसी सांसद की याचिका पर बुधवार को नोटिस जारी किया. हालांकि, उन्हें लोकसभा की कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति देने से इनकार कर दिया. शीर्ष अदालत ने लोकसभा सचिवालय के महासचिव को नोटिस जारी किया.

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि पहले प्रतिवादी (महासचिव, लोकसभा सचिवालय) को दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने दें, तीन सप्ताह में प्रत्युत्तर दाखिल करने दें और मामले को 11 मार्च से शुरू होने वाले सप्ताह में आगे की सुनवाई के लिए निर्धारित किया. मोइत्रा का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने पीठ से उन्हें अंतरिम राहत पर बहस करने की अनुमति देने का अनुरोध किया और कहा, 'मुझे कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति दी जा सकती है. इसपर न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, 'नहीं, नहीं... सूचीबद्ध होने पर हम इस पर विचार करेंगे.

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि कई मुद्दे उठाए गए हैं और वह इस स्तर पर किसी भी मुद्दे पर टिप्पणी नहीं करना चाहेगी. मुद्दों में से एक इस अदालत के अधिकार क्षेत्र और न्यायिक समीक्षा की शक्ति के संबंध में है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता महासचिव, लोकसभा सचिवालय की ओर से पेश हुए. सुनवाई के दौरान मेहता ने पीठ से इस मामले में जारी नहीं करने का आग्रह किया.

न्यायमूर्ति खन्ना ने स्पष्ट किया कि अदालत केवल पहले प्रतिवादी को नोटिस जारी कर रही है. सिंघवी ने तर्क दिया कि कथित रिश्वत देने वाले को नहीं बुलाया गया और समिति के निष्कर्ष विरोधाभासी हैं. सिंघवी ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता ने इस तथ्य को छुपाया कि वह उसके साथ रिश्ते में थी और उन्होंने कहा कि हीरानंदानी उनसे प्रश्न पेश करने के लिए कह रहे थे.

सिंघवी ने कोर्ट से पूछा, क्या कोई सांसद अपना काम नहीं सौंप सकता? एक मिनट के लिए हीरानंदानी की सचिव बनने की कल्पना करें. न्यायमूर्ति खन्ना ने सवाल किया, तो क्या आप स्वीकार कर रहे हैं कि आपने हीरानंदानी के साथ ओटीपी साझा किया था? सिंघवी ने कहा कि जैसा कि प्रत्येक सांसद अपने सचिवों या लोगों के साथ करते हैं, वे उन्हें काम सौंपते हैं. प्राकृतिक न्याय के पहलू पर सिंघवी ने कहा कि दो चीजें हैं. एक, आचार समिति और कोई जिरह नहीं होती और दूसरा, समिति की रिपोर्ट के आधार पर एक प्रस्ताव पेश किया गया लेकिन सदस्यों को 439 पेज लंबी रिपोर्ट की जांच करने का अवसर नहीं दिया गया.

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