नई दिल्ली :एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) और उसके चार सदस्यों के खिलाफ मणिपुर में एफआईआर के मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हुई. शीर्ष कोर्ट ने शिकायतकर्ता के वकील से कई कड़े सवाल पूछे.
शीर्ष अदालत ने कहा कि पत्रकार सही हो सकते हैं या गलत हो सकते हैं, 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यही मतलब है'. कोर्ट ने कहा कि पूरे देश में हर दिन गलत चीजें रिपोर्ट की जाती हैं, क्या अधिकारी पत्रकारों पर मुकदमा चलाएंगे?
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवाई की. शिकायतकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गुरु कृष्ण कुमार ने कहा कि यदि ईजीआई अपनी रिपोर्ट वापस ले लेता है तो यह समस्या का अंत होगा. एडिटर गिल्ड ऑफ इंडिया का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि रिपोर्ट पर जवाबी प्रतिक्रियाएं आई हैं और हमने इसे उसी वेबलिंक पर डाल दिया है.
मणिपुर सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अब कोई भी पत्रकार जा सकता है और अपने विचार और प्रतिवाद रख सकता है, और शीर्ष अदालत के समक्ष आ सकता है और कह सकता है कि उसका मामला एक अलग अदालत में स्थानांतरित किया जाना चाहिए.
मेहता ने कहा कि 'यदि लॉर्डशिप को लगता है कि इसे स्थानांतरित किया जाना है... मैं बीच में नहीं आ रहा हूं, यह मेरी चिंता है कि इस पर ध्यान दिया जाए... ये नैरेटिव बनाया गया है, चाहे सही तरीके से किया गया हो या गलत तरीके से किया गया हो... मूल्य निर्धारण में नहीं पड़ना.'
चीफ जस्टिस ने कुमार से पूछा कि हमें बताएं कि इस रिपोर्ट से इनमें से कोई भी अपराध कैसे बनता है और हमें धारा 153ए देखने दें, 'हम निरस्तीकरण क्षेत्राधिकार देख रहे हैं, हमें दिखाएं कि धारा 153 (कैसे बनती है)…क्या हो रहा है .वे अपना दृष्टिकोण रखने के हकदार हैं. यह एक रिपोर्ट है, आपको यह 153ए कहां से मिलेगा...धारा 200 देखें...'
कुमार ने जवाब दिया, 'वे जो कह रहे हैं, हम उसे रिकॉर्ड पर रखेंगे.' मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'आपको अपनी शिकायत को उसी रूप में देखना होगा जैसे वह है, प्रतिक्रिया को भूल जाओ, और अपनी शिकायत के माध्यम से स्थापित करें कि ये अपराध कैसे बनते हैं.'
कुमार ने कहा कि 'शिकायत या एफआईआर सभी तथ्यों का विश्वकोश नहीं है और अधिकारियों से शिकायत है कि कृपया मामले की जांच करें.' मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'इस तरह के मामले में आपको हमें अपनी शिकायत दिखानी होगी... क्या इससे अपराध के सामग्री की भनक भी लगती है... यह मानते हुए कि वे जो कहते हैं वह झूठ है. किसी लेख में गलत बयान देना धारा 153ए के तहत अपराध नहीं है, यह गलत भी हो सकता है. पूरे देश में आए दिन गलत बातें सामने आती हैं, क्या आप पत्रकारों पर धारा 153ए का मुकदमा चलाएंगे...' मेहता ने कहा कि वह रास्ता अपनाए बिना, उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय जाने दें और अपने उपाय अपनाने दें.
पीठ ने शिकायतकर्ता के वकील से कहा कि वह अपने मुवक्किल का जवाब दाखिल करें कि यह मामला रद्द करने का क्यों नहीं है. मेहता ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि अदालत अनुच्छेद 32 के तहत सैकड़ों याचिकाएं आमंत्रित कर रही है, 'यही मेरी चिंता है...'
मुख्य न्यायाधीश ने बताया कि सेना ने एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया को पत्र लिखकर कहा था कि पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग हुई थी और उन्हें मणिपुर का दौरा करने और उचित रिपोर्ट बनाने के लिए आमंत्रित किया था. उन्होंने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की. मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'वे सही हो सकते हैं या वे गलत हो सकते हैं, या जो कुछ भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब है.'