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Supreme Court : एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के पत्रकारों को राहत, SC ने कहा- 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यही मतलब है'

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) के पत्रकारों ने मणिपुर में दर्ज एफआईआर को रद्द कराने और गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है. ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता सुमित सक्सेना की रिपोर्ट में जानिए सुनवाई के दौरान कोर्ट में क्या हुआ.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 15, 2023, 5:35 PM IST

नई दिल्ली :एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) और उसके चार सदस्यों के खिलाफ मणिपुर में एफआईआर के मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हुई. शीर्ष कोर्ट ने शिकायतकर्ता के वकील से कई कड़े सवाल पूछे.

शीर्ष अदालत ने कहा कि पत्रकार सही हो सकते हैं या गलत हो सकते हैं, 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यही मतलब है'. कोर्ट ने कहा कि पूरे देश में हर दिन गलत चीजें रिपोर्ट की जाती हैं, क्या अधिकारी पत्रकारों पर मुकदमा चलाएंगे?

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवाई की. शिकायतकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गुरु कृष्ण कुमार ने कहा कि यदि ईजीआई अपनी रिपोर्ट वापस ले लेता है तो यह समस्या का अंत होगा. एडिटर गिल्ड ऑफ इंडिया का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि रिपोर्ट पर जवाबी प्रतिक्रियाएं आई हैं और हमने इसे उसी वेबलिंक पर डाल दिया है.

मणिपुर सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अब कोई भी पत्रकार जा सकता है और अपने विचार और प्रतिवाद रख सकता है, और शीर्ष अदालत के समक्ष आ सकता है और कह सकता है कि उसका मामला एक अलग अदालत में स्थानांतरित किया जाना चाहिए.

मेहता ने कहा कि 'यदि लॉर्डशिप को लगता है कि इसे स्थानांतरित किया जाना है... मैं बीच में नहीं आ रहा हूं, यह मेरी चिंता है कि इस पर ध्यान दिया जाए... ये नैरेटिव बनाया गया है, चाहे सही तरीके से किया गया हो या गलत तरीके से किया गया हो... मूल्य निर्धारण में नहीं पड़ना.'

चीफ जस्टिस ने कुमार से पूछा कि हमें बताएं कि इस रिपोर्ट से इनमें से कोई भी अपराध कैसे बनता है और हमें धारा 153ए देखने दें, 'हम निरस्तीकरण क्षेत्राधिकार देख रहे हैं, हमें दिखाएं कि धारा 153 (कैसे बनती है)…क्या हो रहा है .वे अपना दृष्टिकोण रखने के हकदार हैं. यह एक रिपोर्ट है, आपको यह 153ए कहां से मिलेगा...धारा 200 देखें...'

कुमार ने जवाब दिया, 'वे जो कह रहे हैं, हम उसे रिकॉर्ड पर रखेंगे.' मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'आपको अपनी शिकायत को उसी रूप में देखना होगा जैसे वह है, प्रतिक्रिया को भूल जाओ, और अपनी शिकायत के माध्यम से स्थापित करें कि ये अपराध कैसे बनते हैं.'

कुमार ने कहा कि 'शिकायत या एफआईआर सभी तथ्यों का विश्वकोश नहीं है और अधिकारियों से शिकायत है कि कृपया मामले की जांच करें.' मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'इस तरह के मामले में आपको हमें अपनी शिकायत दिखानी होगी... क्या इससे अपराध के सामग्री की भनक भी लगती है... यह मानते हुए कि वे जो कहते हैं वह झूठ है. किसी लेख में गलत बयान देना धारा 153ए के तहत अपराध नहीं है, यह गलत भी हो सकता है. पूरे देश में आए दिन गलत बातें सामने आती हैं, क्या आप पत्रकारों पर धारा 153ए का मुकदमा चलाएंगे...' मेहता ने कहा कि वह रास्ता अपनाए बिना, उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय जाने दें और अपने उपाय अपनाने दें.

पीठ ने शिकायतकर्ता के वकील से कहा कि वह अपने मुवक्किल का जवाब दाखिल करें कि यह मामला रद्द करने का क्यों नहीं है. मेहता ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि अदालत अनुच्छेद 32 के तहत सैकड़ों याचिकाएं आमंत्रित कर रही है, 'यही मेरी चिंता है...'

मुख्य न्यायाधीश ने बताया कि सेना ने एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया को पत्र लिखकर कहा था कि पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग हुई थी और उन्हें मणिपुर का दौरा करने और उचित रिपोर्ट बनाने के लिए आमंत्रित किया था. उन्होंने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की. मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'वे सही हो सकते हैं या वे गलत हो सकते हैं, या जो कुछ भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब है.'

मेहता ने कहा कि अगर एफआईआर रद्द कर दी जाती है तो इसका असर हो सकता है और अदालत जानती है कि स्थिति नाजुक है और पत्रकारों को दी गई सुरक्षा जारी रहने दें और उन्हें अपने उपायों का लाभ उठाने दें. 'लेकिन कृपया उल्लेख करें कि इसका मणिपुर उच्च न्यायालय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है.'

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा जनहित याचिका पर विचार किया जाता है, परिवार के मुखिया को इससे अधिक कुछ नहीं कहना चाहिए...निश्चित रूप से इस प्रकार की जनहित याचिकाओं की तुलना में विचार करने के लिए अधिक दबाव वाले मामले हैं...'

दो सप्ताह की दी राहत :विस्तृत दलीलें सुनने के बाद, शीर्ष अदालत ने विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में मणिपुर में दर्ज दो प्राथमिकियों के संबंध में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) के चार सदस्यों को दी गई दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा दो सप्ताह के लिए बढ़ा दी. शीर्ष अदालत ने उत्तरदाताओं को मामले में आपत्तियां दर्ज करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया और शिकायतकर्ता को भी पक्षकार बनाने की स्वतंत्रता दी.

ईजीआई अध्यक्ष और उसके तीन सदस्यों के खिलाफ प्रारंभिक शिकायत राज्य सरकार के लिए काम कर चुके एक सेवानिवृत्त इंजीनियर नंगंगोम शरत सिंह द्वारा दर्ज की गई थी. दूसरी एफआईआर इंफाल पूर्वी जिले के खुरई की सोरोखैबम थौदाम संगीता ने दर्ज कराई थी.

ईजीआई अध्यक्ष सीमा मुस्तफा के अलावा जिन लोगों पर मामला दर्ज किया गया है उनमें वरिष्ठ पत्रकार सीमा गुहा, भारत भूषण और संजय कपूर शामिल हैं. ईजीआई पत्रकारों ने एफआईआर को रद्द करने और गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया.

11 सितंबर को, ईजीआई ने शीर्ष अदालत को बताया कि उसने भारतीय सेना के निमंत्रण पर 'स्थानीय मीडिया द्वारा पक्षपातपूर्ण और अनैतिक रिपोर्टिंग' की जांच करने के लिए पत्रकारों की एक टीम को मणिपुर भेजा था. उन्होंने भारतीय सेना द्वारा 12 जुलाई, 2023 को एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया को लिखे एक पत्र का हवाला दिया और कहा कि यह सेना का एक निमंत्रण है जिसमें कहा गया है कि वहां क्या हो रहा है.

ईजीआई का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इस बात पर जोर दिया कि पत्रकारों की टीम सेना के निमंत्रण पर मणिपुर गई थी और सेना जमीन पर क्या हो रहा था, इसका वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन चाहती थी.

4 सितंबर को मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने कहा था कि एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और तीन सदस्यों के खिलाफ एक शिकायत के आधार पर पुलिस मामला दर्ज किया गया. उन पर राज्य में 'संघर्ष भड़काने' की कोशिश करने का आरोप लगाया गया था.

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