नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने 2जी लाइसेंस के लिए 'लूप टेलीकॉम' द्वारा दिए गए 1,454 करोड़ रुपये वापस किए जाने और लाइसेंस रद्द होने के बाद उसकी प्रतिष्ठा को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए 1,000 करोड़ रुपये दिए जाने का अनुरोध संबंधी याचिका गुरुवार को खारिज कर दी. शीर्ष अदालत ने कहा कि आपराधिक मामले में प्रवर्तकों के बरी होने से उसके ये निष्कर्ष 'मिट' नहीं जाते कि लाइसेंस देने की प्रक्रिया 'मनमानी और संवैधानिक रूप से कमजोर' थी.
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि आपराधिक मामले में कंपनी के प्रवर्तकों के बरी हो जाने से 2जी स्पेक्ट्रम की मंजूरी 2012 में रद्द करने के दौरान शीर्ष अदालत के दिए गए 'निष्कर्ष मिट नहीं' जाते.
उच्चतम न्यायालय ने 2जी स्पैक्ट्रम की मंजूरी रद्द करने का आदेश याचिकाओं के एक समूह की सुनवाई के दौरान सुनाया था. इनमें से एक याचिका गैर सरकार संगठन (एनजीओ) 'सेंटर ऑफ पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन' (सीपीआईएल) ने दायर की थी.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने फैसला पढ़ते हुए कहा, 'आपराधिक आरोपों से याचिकाकर्ता के प्रवर्तकों के बरी होने से वे निष्कर्ष मिटते नहीं हैं, जो सीपीआईएल मामले में न्यायालय के अंतिम फैसले में शामिल थे और इसलिए धोखाधड़ी के लाभार्थी के रूप में याचिकाकर्ता प्रवेश शुल्क वापस लेने के लिए न्यायालय की सहायता नहीं ले सकता.' फैसले में कहा गया कि 'लूप' कंपनी 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस देने संबंधी 'पहले आओ-पहले पाओ' की नीति की लाभार्थी थी और यह नीति 'बोली लगाने वाले निजी सहयोगियों के एक समूह की सरकारी कोष का नुकसान कर मदद करने के लिए बनाई गई थी.'
फैसले में कहा गया, 'याचिकाकर्ता का यह दावा स्पष्ट रूप से गलत है कि सीपीआईएल के मामले में न्यायालय के फैसले में उसे किसी भी गलत कार्य में शामिल होने से दोषमुक्त बताया गया था. (इस न्यायालय द्वारा) 2जी लाइसेंस देने के लिए यूएएस (यूनिफाइड एक्सेस सर्विस) लाइसेंस देने की प्रक्रिया को मनमाना और संवैधानिक रूप से कमजोर पाया गया था.'